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- बांग्ला भाषा में प्रकाशित देश की अति महत्वपूर्ण पत्रिका ‘ मध्यबलय-58’ में कवि प्रदीप भट्टाचार्य रचित हिंदी कविता ‘लोकतंत्र बनाम नेतातंत्र’ का बांग्ला में अनुवादित होकर प्रकाशित हुई : हिंदी की इस कविता को बांग्ला में अनुवाद कवि गोविंद पाल ने किया. ‘मध्यबलय’ के संपादक हैं दुलाल समाद्दार.
बांग्ला भाषा में प्रकाशित देश की अति महत्वपूर्ण पत्रिका ‘ मध्यबलय-58’ में कवि प्रदीप भट्टाचार्य रचित हिंदी कविता ‘लोकतंत्र बनाम नेतातंत्र’ का बांग्ला में अनुवादित होकर प्रकाशित हुई : हिंदी की इस कविता को बांग्ला में अनुवाद कवि गोविंद पाल ने किया. ‘मध्यबलय’ के संपादक हैं दुलाल समाद्दार.
👉 • कवि प्रदीप भट्टाचार्य
बांग्ला भाषा में छत्तीसगढ़ भिलाई से ‘बंगीय साहित्य संस्था’ के सौजन्य से प्रकाशित ‘मध्यबलय-58’ के शारदीय उत्सव विशेषांक में ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ के संपादक व प्रगतिशील कवि प्रदीप भट्टाचार्य की हिंदी में लिखित कविता ‘लोकतंत्र बनाम नेता तंत्र’ बांग्ला में अनुवादित होकर प्रकाशित हुई. हिंदी से बांग्ला में अनुवाद बांग्ला व हिंदी के कवि गोविंद पाल ने की है एवं ‘मध्यबलय’ के संपादक हैं, बांग्ला के कवि दुलाल समाद्दार.
👉 • ‘मध्यबलय-58’ का मुखपृष्ठ
• ‘लोकतंत्र बनाम नेतातंत्र’
• प्रदीप भट्टाचार्य
अजीब विडम्बना है
कैसा ये राष्ट्र शासकों का
सपना है.
रामू के घर
पकती है
आश्वासनों की खिचड़ी
और
नेता उदरस्थ करते हैं
डटकर रात्रि भोज.
दीनू को मयस्सर नहीं
दवा और इलाज की
सुविधा,
नेताजी को छींक भी आए
प्लेन लेकर उनको
विदेश उड़ता.
कमला बेटी के विवाह को
लेकर चिंतित और आतुर है
लेकिन दहेज के नाम पर
भयातुर है
अंटी में कमला के रकम नहीं
पर अखबारों में
नेताओं की शाही शादी के
चर्चे हर कहीं.
क्या यही लोकतंत्र है
अपनी चलती रहे
राजनीति की दुकानदारी
नेताओं का
शायद अब यही
मूलतंत्र है.
रामू, दीनू, कमला
के लिए लोकतंत्र सपना है
उन्हें तो बस
यूँ ही अभावों में
जीना-मरना है.
• कवि संपर्क-
• 94241 16987
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