कविता आसपास : महेश राठौर ‘मलय’
• कविता
• द्रोपदी
– महेश राठौर ‘मलय’
द्रौपदी ही
हो सकती थी
इतनी उदात्त और
उच्चादर्शों वाली नारी।
हमउम्र थी
वह कृष्ण की;
ख्यातिलब्ध राजकुमारी भी।
यज्ञोत्पन्ना थी,
इसलिए अलौकिक भी।
साथ-ही कृष्ण जैसी
साँवली और
मोहक मुस्कान वाली
अनिंद्य सु्ंदरी भी।
आती थी
उसकी देह से सुवास।
ताजे नीलकमल की।
उस युग में
कृष्ण जैसे दिव्य,
कोटि कंदर्पों को
लज्जित करने वाले
सौंदर्य के पर्याय,
षोडस कलाओं से
पूर्ण नागर को
पति या प्रेमी रूप में
पाने के लिए
अनव्याही, व्याही,
उम्र में छोटी, बड़ी,
सौंदर्यशालिनी, असुंदर
सभी स्त्रियाँ ललचती थीं।
चाहते थे
पिता द्रुपद भी
कि विवाह हो
द्रौपदी का कृष्ण के साथ।
लेकिन….
वाह! री
यज्ञसेनी, कृष्णा, पांचाली,
सैरन्ध्री, द्रुपदसुता जैसे
अन्य सार्थक नामों से
अभिहित ‘द्रौपदी’
कह दिया साफ-साफ
कि इच्छुक नहीं वह
कृष्ण से विवाह की।
उसने नाता रखा उनसे
मात्र विशुद्ध सखा का।
विवाह के पूर्व
उसने किसी पुरुष से
प्रेम नहीं किया।
इतना उच्चाचरण
किसी और में कहाँ?
वह निर्विकार थी।
वासना से पूरी तरह परे।
कर्ण की कुण्ठा थी,
जो उसने द्रौपदी को
वेश्या कहा।
विडम्बना थी-
पाँच-पाँच पतियों की
भार्या होना।
जिस पति के साथ
जब तक तक रही;
अन्य पतियों की
छवि सपने में भी नहीं देखा।
इतनी मनोनिग्रही तो
केवल देवी हो सकती है।
तभी तो वह
पंचकन्याओं में एक थी।
गंगा और तुलसी की तरह
पूरी तरह पवित्र।
• पता-
• महेश राठौर ‘मलय’
[ ‘अभिराम’, पुरानी सिंचाई कॉ लोनी के पास, डीवाइन पब्लिक स्कूल रोड, जांजगीर- 495687, छत्तीसगढ़ ]
• संपर्क-
• 98279 88725
• 81094 70546
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