आदिवासियों के माने जाते हैं आराध्य, जाने जुड़ी मान्यताएं
’आंगा देव’ बस्तर के आदिवासी समुदाय में माने जाने वाले देवता हैं, शुभ कार्य के पहले इनकी पूजा की जाती है। बस्तर का आराध्य माना जाता है यह चलायमान देवस्थान है।
इस समुदाय के लोग सागौन की लकड़ी से डोली का निर्माण करते है और इसे मिट्टी, मोर पंख के साथ सजाते हैं। इसका निर्माण पूरे विधी विधान से पूजा अर्चना करके किया जाता है और समुदाय की मान्यता है कि इसमें देवता वास करते हैं।
समुदाय का यह मानना है कि यह देव की मूर्ति नहीं है, लेकिन इस पर देव आता है।
देव को एक गांव से दूसरे गांव ले जाते हैं। आंगा देव को सिर्फ मर्द की उठा सकते हैं, जबकि स्त्रियों को उठाने की मनाही है। देवता को 12-13 वर्ष के बच्चों द्वारा ही उठवाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि देव बच्चों के आंगा उठाने से जल्दी प्रसन्न होते हैं।
अलग-अलग समय पर गांवों ने आंगा बनाए जाते है, परंतु आंगा उस समय बनाया जाता है जब देव किसी परिवार को सताए और फिर अपना आंगा स्थापित किए जाने की मांग करे।
केशकाल में स्थित आंगा देव को साल में दो ही बार निकाला जाता है। भंगाराम की जात्रा के समय, दूसरे मार्च माह में केशकाल बाजार के मेले में। मेले में अनेक आंगा, एवं डोलियां और अन्य देवी-देवता आते हैं। यह मेला होली के पांच दिन बाद लगता है।
किसी गांव में यदि के किसी व्यक्ति पर कोई भयानक परेशानी या संकट आ गई और वहां कोई आंगा नहीं है, तो वे केशकाल के आंगा को अपने गांव आमन्त्रित करते हैं। इसके लिए उस व्यक्ति को केशकाल पुलिस थाना में सूचना देना पड़ती है और आंगा के आने-जाने का खर्चा देना पड़ता है। आंगा लेकर पुजारी और पावे दोनों जाते हैं।