लघुकथा
●बाथटब
-श्रीमती संतोष झांझी
भाई की शादी के दो साल बाद उषा को मायके आने का अवसर मिला। सतमासी डिलीवरी के बाद जच्चा बच्चा दोनों के स्वास्थ्य को देखते हुए रमेश और सासूमाँ ने उसे मायके जानें नही दिया।
ससुराल मे डाक्टर के निर्देशानुसार जच्चा बच्चा दोनों को गाय का दूध दिया जाता पर वह दूध ग्वाला देकर जाता था।उषा ने तो दूध का एक घूंट गले से उतारा और झट बता दिया—“यह गाय का दूध है ही नहीं । “बचपन से उसनें अपनें घर में गाय का दूध ही पिया था।
आखिर छै माह के बेटे को लेकर कम से कम एक माह मायके मे रहनें की इज़ाजत उषा को मिल गई । सभी जानते थे उषा के मायके में ऊँची नस्ल की एक स्वस्थ गाय है जो अभी कुछ दिन पहले ही बियाई है।
दो साल बाद उषा के आनें से सभी बहुत प्रसन्न थे। सभी से गले मिलनें के बाद उषा नें आवाज लगाई—” मंगला” पर सन्नाटा छाया रहा। उषा ने फिर दो तीन बार पुकारा—“मंगला,मंगला,,,,,,तो कहीं दूर से गाय के रंभाने की आवाज आई।
उषा ने जरा आश्चर्य से मां की तरफ देखा—” मंगला कोठे मे नहीं है क्या माँ ? कहीं दूर से उसकी आवाज आ रही है ?”
भाई उठकर अंदर चला गया। माँ ने सर झुका लिया–“उसे विश्नोई जी को बेच दिया।
बहू को गाय कोठे से बदबू आती थी।वहाँ अब बाथदॅब वाला बड़ा बाथरूम बनवा लिया है।