लघुकथा
●तलाश
-डॉ. बलदाऊ राम साहू
“जो सत्य की राह पर चलता है, वह सदैव कष्ट पाता है।”
सुखदाम ने यह सुन रखा था।
उसे हरिश्चन्द्र की कहानी बार-बार याद आती थी। हरिश्चन्द्र को कितने कष्ट सहने पड़े?
उसका भी यही व्यक्तिगत अनुभव रहा था वह भी सत्य की राह पर चलकर कष्ट भोग रहा था। अब तो सुखदाम ने सत्य की पथरीली राह छोड़कर असत्य की कीचड़युक्त मुलायम राह अपनाने की ठानी।
मार्ग चुनना भी तो कठिन होता है।
वह इसी विचार में डूबता-उतरता रहा कि असत्य का कौन-सा मार्ग चुनूँ?
उसने इस विषय पर अपने मित्रों, बंधुओं से भी गंभीर मंत्रणा की, पर कोई भी उसे सरल राह नहीं दिखा पाया।
इसी उधेड़बुन में सुखदाम एक दिन शहर ही ओर चल पड़ा यह सोचकर कि शहर में शायद उसे कोई राह मिल जाए। वह जानता था कि शहर में कई तरह के लोग रहते हैं। जिनमें से अधिकांश लोग छल-कपट, प्रपंच में भी माहिर होते हैं। उसने सुन रखा था कि कुछ जादूगर तो रस्सी को भी सांप बना सकते हैं।
शहर पहुँच कर वह दिन भर गलियों की खाक छानता रहा अंत में शाम ढले उसकी नजर विशालकाय बंगले की ओर पड़ी जहां आम लंगर चल रहा था। उसने भी पूड़ी खीर पापड़ रायता अचार और गाजर के हलुए का लुत्फ उठाया।
उसने इतना खाया कि उठ न सका।
एक तो दिन भर की थकान उपर से भारी गरिष्ठ भोजन। वह बिन पिये ही मदहोशी में झूमता हुआ, रेंगकर बंगले के कोटियाट में लगे बरगद की पेड़ के नीचे ठंडी छाँव में पहुंच गया और अजगर की तरह लेट गया।
पेड़ के दूसरी तरफ मंत्री जी विराजमान थे। वह फुसफुसाकर बोल रहे थे….कल चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने का आखिरी दिन है। फिर जरा गंभीर होकर अपने गुर्गों को जरा स्पष्ट निर्देश देकर वे बोले….देखो!! पिछली बार की तरह कोई सुखदाम आकर पर्चा दाखिल न कर दे। पिछले चुनाव में सात सात सुखदाम ने अपना दाम बढ़ाकर मेरा सुख छीन लिया था।
संयोग से मंत्री जी का नाम भी सुखदाम था।
सुखदाम ने यह गहरे राज की बातें सुन लीं। वह आठवीं फेल था। तभी पेड़ तले उगा हुआ घास का नुकीला भाग उसकी लंबी नाक में घुस पड़ा और उसे छींक आ गई।
अचानक दूसरी तरफ से आई आवाज से मंत्री संतरी कंतरी सब उसे पकड़ने के लिए दौड़ पड़े।
सुखदाम पूरी ताकत से बाहर की ओर दौड़ पड़ा। सामने विपक्ष के नेता के बंगला था। वह रॉकेट की तरह बंगले के भीतर प्रविष्ट हो गया। भीतर विपक्ष के नेता खाली थाली पकड़े सत्ता देवता की मौन आराधना में डूबे हुए थे।
उधर बाहर खड़े गुर्राते कुत्तों का दल अपनी सरहद जानकर पूँछ झुकाकर लौट पड़ा।
विपक्ष के नेता अवसर दाम ने उससे पूछा….कौन हो भाई? तुम्हारा क्या नाम है? कित्थे को आवे कित्थे को जावे? इस अकिंचन से क्या चाहते हो?
इतने सारे सवाल सुनकर वह कुछ जागृत अवस्था में आकर इतना ही बोल सका…. सुखदाम!!
सुखदाम!!!?
इतना सुनते ही खाली पीली नेता के हाथ से थाल छूट पड़ी। वह उसके चरणों में गिर पड़ा और प्रणय गीत सुनाते हुए निवेदन करने लगा…..मुझे इश्क है तुझी से मेरी जाने जिंदगानी….।
वह भोला सुखदाम कुछ समझ न सका पर वह फिर से उस अहेतुकी कृपा बरसाने वाले नाथ का हाथ छुड़ाकर भाग निकला।
बाहर मंत्री के गुर्गे बांस में फंदा बना झाड़ियों में छिपे बैठे थे। बाहर निकलते ही वह धर लिया गया।
अब उसे मंत्री जी सामने पेश किया गया। मंत्री जी उसके पेश किए जाने के पहले ही सारी बातें जान चुके थे।
मंत्री जी ने काजू की खीर खाकर डकार मारते हुए कहा बोलो क्या चाहते हो?
सुखदाम घबराकर चुप रहा।
मंत्री जी ने सोचा इसका दाम कुछ ज्यादा ही है। वे कुछ सोचकर अपनी अनियंत्रित तोंद पर हाथ फिराते हुए बोले….देखो!!! मेरा चुनाव जीतना तय है पर….वो भी संजीदा होकर मशहूर गीत गुनगुनाने लगे…..वादा करो नहीं छोड़ोगे तुम मेरा साथ….।
अब सुखदाम ने उनके साथ सुर में सुर मिला दिया…..जहां तुम हो वहां मैं भी हूँ।
उसे बिन पीये ही तत्काल मंत्री जी का पी ए बना दिया गया।
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