लघुकथा
●आज़ादी का अर्थ
-महेश राजा
आलीशान इमारत।चारों तरह खूब सजावट हो रही थी।नौकर बिरजू सफाई कार्य में व्यस्त था।पास ही उसका छोटा लडका ननकू खड़ा होकर यह सब देख रहा था।
कुछ देर बाद उसने बिरजू का हाथ पकड कर पूछा-“,बाबू ,यह सब क्या हो रहा है,कोई शादी ब्याह होने वाला है क्या?”
बिरजू ने दिवार से जाला हटाते हुए ,हंँसते हुए कहा-“नहीं रे,कल 26 जनवरी है न।नेताजी से मिलने बड़े -बड़े लोग आयेंगे।खूब खुशियाँ मनायी जायेगी,मिठाइयांँ बाँटी जायेगी।”
ननकू बाल सुलभ मुद्रा मे बोला, -“26 जनवरी को क्या हुआ था ,बाबू जो कि मिठाई बांँटी जायेगी?
बिरजू ने अपनी समझ से 15अगस्त और 26 जनवरी को गड्ड मड्ड करते हुए बताया-“,बेटा इसी दिन तो हमारा देश
आजाद हुआ था।अंँग्रेज भारत छोड़ कर भागे थे।
-“बाबू यह आजादी क्या होती है?
ननकू की पीली पड़ी आंँखों में उत्सुकता थी।
-आजादी के माने स्वतंँत्रता, किसी का किसी पर दबाव नहीं।सबको अपने ढ़ंग से जीने का पूरा हक होता है”
-बिरजू बोला।
नन्हें ननकू की आंँखो में बापू का पसीने से भीगा तरबतर शरीर तैर आया।
सुबह पांँच बजे से रात को दस बजे तक उसने अपने बाबू को बैल की तरह काम करते हुए ही देखा था।एक मिनट का भीचैन नहीं।उस पर नेताजी की डांटफटकार अलग। मालकिन की गालियाँ।और खाने मे बची खुची झूठन।
उसके मुंँह से एकाएक निकल पडा-“तो बाबू ,तुम कब आजाद होओगे?”
बिरजू चुप रहा। वह असहाय भाव से अपना काम करता रहा।उसके बेटे के
इस सवाल का जवाब नहीं था।
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