गणतंत्र दिवस
●डॉ. मीता अग्रवाल’मधुर’
●1 आग सीने में भड़कती
सीप सीने पाल मोती
स्वाति बूँदो को तरसती,
दाह अंतस में उजाला
आग सीने में भड़कती ।
वीर रक्षक देश खातिर
जान तुम अपनी गंवाते
धीर धर करते निछावर
राह से काँटे हटाते
दीप का गुल था धुआँ भी
टीस सी अंतस कसकती।
भूलते सुख-चैन नींदें
देहरी घर-द्वार भूले,
भोर की अरुणिम किरण से
चाँद के सब तार छू लें
रागिनी साहस ह्रदय में
ज्वार अभिलाषा सिसकती।
देश रक्षा ह्रदय थामे
भाल ऊँचा तिलक साजे
धूप बरखा है सहेली
बाँह धर खुशियाँ विराजें
मात-खा गर गिर पड़े तो
वेदना सौ-गज फटकती।
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●2 वीर योद्धा
वीर जय को वरण करता
भूमि हित कौशल दिखाता
साधना-पट खोल झाँके
रण विजय-पथ दौड़ पाता।
नित करे है कर्म-कौशल
भूमि-रज ही माथ राजे
रिपु दमन कर हर्ष भरता
दीप की बारात साजे
चाँदनी फैले गगन में
चहुँ दिशा मेला सजाता।
अनगिनत फैले सितारें
रौशनी हारी जमीं से
जबअमा चंदा निगलती
शिव अराधन कर शमी से
बाँध रेशम डोर बंधन
प्रीत भ्राता ही निभाता।
जंग जब भी हूक भरता
काँपता मन भीत द्वारे
साहसी भव प्राण सजते
काल नित विपरीत प्यारे
एक योद्धा हारता मन
और फिर वो जीत जाता
वीर जय—
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●3 वीर सैनिक
शान से ऊँचा तिरंगा
आए नहीं आँच
बादलों संग करे बातें
वीर सैनिक बाँच।
शिखर चूमें धूम्र पहरा
मात भारत गान
देख रिपु-दल थर थराएँ
हैं खड़ा सिंह जान
अरि चरण बढ़ ड़गमगाएँ
पाँव चुभता काँच ।
हैअचल तपसी हिमाला
स्वर्ण चमकें भाल
साधना-रत मगन ध्यानी
बैठ फैला जाल
बंकरो में बैठ सैनिक
दे संदेशें साचँ।
मौत से वो करें बातें
पीर न परवाह
बाँधतें गठजोड़ धरणी
माथ चंदन चाह
प्रीति-पाती भावना हित
पाँव आतीं लाँच ।
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