लघुकथा
सरकारी बजट
-महेश राजा
नया बजट आ गया था।गैस,डीजल पेट्रोल और जरूरत की अन्य चीजें महँगी हो गयी थी।आफिस में इसकी चर्चा चल रही थी।सभी बहुत दुःखी लग रहे थे,महिलाएं भी।विचार-विमर्श चल रहा था कि अब गुजारा कैसे होगा।सरकार ने तो महँगाई -भत्ते की एक किस्त बढ़ा कर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर दी थी,लेकिन क्या इतने से बढ़े वेतन से बढ़ती महँगाई से मुकाबला किया जा सकता है,भला?
बड़े बाबू एक कोनें में खड़े होकर उन सबकी बातें सुन रहे थे।मैंने पूछा-“बड़े बाबू,बजट में कीमतें बढ़ गयी है ,लेकिन आप एटदम चुप है,कुछ कह नहीं रहे।”
बड़े बाबू मुस्कुरा कर बोले-“सरकार ने देश के विकास के लिये कीमत बढ़ाई है…हम अपने विकास के लिये रेट बढ़ा देंगे।पहले जिस काम का सौ लेते थे,अब दो सौ लेंगे।”
-“मैंने अपने कार्यकाल में ऐसे कितने ही बजट देखें है और अपनी कीमत बढ़ायी है।”
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