






ग़ज़ल- डॉ. बलदाऊ राम साहू
4 years ago
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हुआ है अँधेरा न जाने इधर क्यूँ,
नन्हा-सा दीया उधर तुम जला दो।
कहानी पुरानी किताबों में है जो,
जरा पढ़ केअब तुम हमें भी सुना दो।
देखो यहाँ आज मुफ़लिस है कोई,
भीतर में उनके एक लौ जला दो।
सब का नज़रिया यहाँ कातिलाना,
प्रेम का पियाला उन्हें तुम पिला दो।
बर्बर – सा अकेला रहता कोई भी
इंसाँ की भाषा उन्हें तुम पढ़ा दो ।
●लेखक संपर्क-
●94076 50458
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