कविता -प्रियंका सिन्हा, नई दिल्ली
तिरंगा है कुछ कहता
अनेकता में एकता की बातें
●प्रियंका सिन्हा
तिरंगा है कुछ कहता
अनेकता में एकता की बातें
या अपने देश की विशालता
जाने कितने लोग स्वाहा हुए
मेरी शान में मिटते हुए
सांसे रुक गई,जिस्म छलनी हो गए
पर मेरी गरिमा को बचाने में कदम बढ़ते ही गए
आन हूं मैं,बान हूं
इस देश की शान हूं
कितने वर्ष लग गए
अपनी जमीनी हक़ीक़त को पाने में
पर देश के हालात मजबूर कर रहे हैं
आंतरिक समस्या से निजात ना पाने में
क्या थी मेरी गौरव गाथा
आज बन गई है अपने ही लोगों की व्यथा
विरोध प्रदर्शन करने का अब बन गया हूं जरिया
अपने ही लोगों ने मुझे आग में झोंक दिया
भगत सिंह हों या सुभाषचंद्र बोस
इन सपूतों ने लगाए मेरी शान में जयघोष
आज उन्हीं वीरों की धरती
अपने ही अपनों का खून है बहाती
देश से बाहर जब मैं हूं लहराता
देशभक्तों का सीना गर्व से है फट जाता
सोने की चिड़िया कहलाने वाला भारत
आंतरिक कलह से हो गई है उसकी बदतर हालत
शांति का देश कहलाने वाला भारत
खून खराबा, छींटा कशी,विरोध प्रदर्शन की लगी है जमघट
मेरे तीन रंग
कितने संदेश समेटे है अपने संग
मेरे सीने पे अशोक चक्र का पहिया घूम रहा है
मेरी हर तीलियां वीरों की गाथा ब्यां कर रहा है
उठ जा भारत,अब जग जा
अपने कसीदे में पढ़े जाने वाले शब्द को रूबरू करा जा
मैं तिरंगा अपने आप में हूं कहता
जय हिन्द का नारा हर दिल से निकलता
[ ●नई दिल्ली निवासी प्रियंका सिन्हा ‘छत्तीसगढ़ आसपास वेब पोर्टल’ के लिए पहली बार रचना प्रेषित की है. ●प्रियंका सिन्हा की तीन कविताएं ‘अमर उजाला’,दो कहानी ‘अच्छी खबर’ में छपी है. ●’कादम्बिनी’ के लिए भी रचनायें लिखी हैं. -संपादक ]
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