छत्तीसगढ़ी गीत – डॉ. पीसी लाल यादव.
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●पिवरी पहिर सरसों झूमें
पिंवरी पहिर सरसों झूमे।
तितली भौंरा मया म चूमे।।
अरसी ह बांधे अईंठी मुरेरी पागा।
बटरा तिंवरा ढिले, पिरीत के तागा।।
पुरवइहा बइहा बन घूमे ।
पिंवरी पहिर सरसों झूमे।।
ढोलक बजावत हे, ठेमना चना ह।
राहेर हलावत हे,धरे घुनघुना ल।।
गहूँ घलो हरमुनिया धुँके।
पिंवरी पहिर सरसों झूमे।।
धरसा के परसा, सुलगावत आगी।
लाली सेम्हरा ल फभे, हरियर पागी।।
कोइली ह बाँसुरिया फूँके।
पिंवरी पहिर सरसों झूमे।।
जंगल -पहार माते,माते हे मउहा।
नरवा तीर नसा म ,झुमरत कउहा।।
मऊरे आमा देवय हूमे।
पिंवरी पहिर सरसों झूमे।।
[ ●डॉ. पीसी लाल यादव,हिंदी व छत्तीसगढ़ी में कई बाल संग्रह प्रकाशित एवं लोक साहित्य पर भी कुछ किताबें हैं. ●छत्तीसगढ़ शासन शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त,अब स्वतंत्र लेखन के रुप में सक्रिय. -संपादक ]
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