लघुकथा
■संबंधों के बसंत
-महेश राजा
[ महासमुंद, छत्तीसगढ़ ]
बसंत अंक के लिये कुछ लिखने के लिये भेजने के लिये संपादक महोदय का आग्रह था।मैं बरबस मुस्कुरा दिया।बसंत पर्व का अर्थ है ,खुशियों भरा त्यौहार। फिर मेरे तो जीवन से जुडे ही क ई बसंत है।
प्रथम मेरे आदरणीय मोटाभाई बसंत राजा;आज जो कुछ भी हूं, उन्हीं की वजह से।
दूसरे है मेरे सदाबहार,हंसमुख सखा बसंत कुमार,मेरे जिगरी।हर सुख दुःख मे शामिल।भरे पूरे चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहट लिये।यह ईंसान ,सबको सदा हंसाते रहता है,पर भीतर बडा सा पतझरो वाला कैक्टस लिये जी रहा है।मुझसे ज्यादा उसे कौन समझ सकता है…।
तीसरे श्री बसंत जैन बीमा वाले।हमेंशा मदद को तैयार।आपको देखते ही चेहरे पर सिल्वर जुबली मुस्कान से नवाजेंगे।चाय,पान हाजिर।फिर धीरे से आपके शरीर पर निगाहें डालेंगे,जैसे कह रहे हो-अब तो बीमा करवा लो भाई.नहीं तो पछताओगे।हम तो सदा आपके साथ,जिंदगी के साथ भी,जिंदगी के बाद भी।
फिर कुछ उदाहरण भी बतायेंगे।आजकल उमर का कोई भरोसा नहीं. कौन कब चल दे।
अब आप सब ही बताईये इतने सारे बसंतो के रहते हुए मैंकभी उदास रह सकता हूँ भला।सो मैं भी मुस्कुराता रहता हूं।आप सब भी सदा मुस्कुराते रहे।सभी को बसंत उत्सव मुबारक हो।
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