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बंगीय साहित्य संस्था
■अंतराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर बंगीय साहित्य संस्था द्वारा आयोजित.
■विशेष उपस्थिति- ●स्वपन गराई
■संचालन गोविंद पाल, धन्यवाद ज्ञापन पुलिन पाल.
छत्तीसगढ़ । भिलाई । बांग्लादेश में बांग्ला भाषा को लेकर 1952 में बहुत बड़ा आंदोलन हुआ था जिसमें पाकिस्तानी पुलिस और सेना बांग्ला भाषा आंदोलनकारियों बर्बर अत्याचार किये थे रफिक, बरकत, जब्बार, सलाम आदि कई छात्र नेता उसमें शहीद हुए थे धीरे-धीरे ये आंदोलन आगे चलकर 1972 में अलग बांग्लादेश बनने का कारण बना। उस आंदोलन में हमारे बंगीय साहित्य संस्था के अधिष्ठाता स्व. शिवब्रत देवानजी भी शामिल हुए थे जेल भी गये थे। वही आंदोलन आगे चल कर अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मान्यता पूरे विश्व मान्यता मिली। वह दिन 21 फरवरी को पुरे विश्व में मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया जाता है उसी उपलक्ष्य पर बंगीय साहित्य संस्था भिलाई द्वारा 21 फरवरी को वरिष्ठ अधिवक्ता व बंगीय साहित्य संस्था के पदाधिकारी श्रीमति आरती चंदा के निवास पर मातृभाषा दिवस का कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता बंगीय साहित्य संस्था के आजीवन सदस्य व पूर्व कार्यकारी निदेशक स्वपन गराई ने की। सबसे पहले पहले मातृभाषा दिवस पर चर्चा करते हुए समरेन्द्र बिश्वास, आरती चंदा, शुभेन्दु बागची, वंदना सिन्हा, स्मृति दत्ता आदि ने मातृभाषा आंदोलन की ऐतिहासिक तथ्यों को उजागर करते हुए विस्तृत जानकारियां दी। तत्पश्चात खुकू समाद्दार और पापिया गराई ने बांग्ला भाषा व मातृभाषा पर आधारित गीत प्रस्तुत की। मातृभाषा से संबंधित कविता पाठ पल्लव चटर्जी, शुभेन्दु बागची, वासुदेव भट्टाचार्य, समरेन्द्र बिश्वास, दलाल समाद्दार, पुलिन विहारी पाल, गोविंद पाल, स्मृति दत्ता आदि लोगों ने कविता पाठ किए। कार्यक्रम का संचालन हिंदी व बांग्ला के चर्चित कवि गोविंद पाल ने किया। अंत में कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे स्वपन गराई ने द्विजेन्द्र लाल के बंगाल तथा बांग्ला संस्कृति पर सुप्रसिद्ध गीत “धनधान्ने पुष्प भरा, आमादेरी वसुंधरा,” सुमधुर आवाज में गाकर सुनाते हुए अपना अध्यक्षीय वक्तव्य दिये। पुलिन पाल ने सबको धन्यवाद देते हुए आभार प्रगट किए।
[ ●साहित्यिक डेस्क,’छत्तीसगढ़ आसपास’. ●प्रिंट एवं वेबसाइट वेब पोर्टल, न्यूज़ ग्रुप समूह,रायपुर,छत्तीसगढ़. ]
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