लघुकथा
■नज़रिया
-महेश राजा
[ महासमुंद, छत्तीसगढ़ ]
कैन्टीन मे एक पुराने मित्र से मुलाक़ात हो गयी।साथ साथ चाय पी।पुरानी यादे ताजा हो गयी।पडोस के ही शहर मे उनका गुड,तेल का व्यापार था।
बातों के दौरान ज्ञात हुआ कि उनकी दो बेटियाँ है।उसके बाद उन्होंने आपरेशन करवा लिया था।मैंने भी बताया कि दो लडके है,एक बेटी की ईच्छा थी,पर श्रीमति ने आपरेशन करवा लिया था।
अभी हम बातें कर ही रहे थे कि दोस्त के एक परिचित दिख गये।अभिवादन के बाद उन्हें भी चाय पर आमंत्रित किया गया।
मित्र ने उक्त परिचित से पूछा,भ ई आपके यहां तो तीसरा
ईश्यू होने वाला था,क्या हुआ?
मायूस स्वर मे बोले,इस बार भी लडकी ही हुई।
मैंने अनायास कह दिया,अच्छा ही तो है,दिपावली पर लक्ष्मी घर आयी।
इस पर मित्रबोले,यह तो ठीक नहीं हुआ।
सोनोग्राफी नहीं करवायी थी।काफी उम्मीद थी,सबको कि इस बार लडका ही होगा।
मैंने आश्चर्य से मित्र को देखा,यह तुम कह रहे हो।जबकि तुमने तो दो बेटियों के बाद आपरेशन करा लिया था।
मित्र क्षोभ पूर्ण स्वर मे बोले,इसी बात का तो अफसोस है।जल्द बाजी और जोश मे निर्णय तो ले लिया,पर अब पछता रहा हूँ।आज महसूस होता है,एक प्रयास और करना था।
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