अनुभव आसपास
■हमारा नज़रिया
-तेज़राम शाक्य
मैं और परिवार के सभी लोग बहुत खुश थे। उस समय नवरात्रि का समय था हम लोगों ने वास्तव में कार खरीदी थी, जिस कारण बच्चे भी बहुत उत्साहित थे।अब सब लोग एक साथ वीकेंड पर पिकनिक मनाने कहीं भी जा सकेंगे। दोस्तों से मिलने जुलने के लिए भी कार से अब आना जाना हो सकेगा, ऐसी ही बहुत कुछ विचारों से मन प्रफुल्लित हो रहा था। फिर एक रात हम लोग सभी खाने के बाद गपशप कर रहे थे, तो बातों ही बातों में दीपावली पर कहीं घूमने का प्लान तैयार हुआ। अब कहां जाया जाए इस पर बहस चल रही थी,आखिरकार मां की बात फाइनल हुई कि हम सभी लोग दीपावली की छुट्टियों में नाना नानी के घर जाएंगे वह जबलपुर में रहते है। रायपुर से जबलपुर करीब 600 किलोमीटर का सफर हम लोगों ने नई कार से जाने का सोचा।
नियत समय पर हम लोग रवाना हो गए। शाम के धुंधलके में हम लोग घर पहुंचे तो नाना- नानी अवाक रह गए, क्योंकि हमने अपने आने का उन्हें सरप्राइज दिया था। अचानक खुशी मिलती है तो उसका आनंद द्विगुणित हो जाता है। वही हम सभी अनुभव कर रहे थे, 3 दिन कैसे निकल गए पता ही नहीं चला कुछ जरूरी परचेसिंग के बाद सुबह विदाई की बेला भी आ गई। मम्मी जी की मम्मी एवम पापा जीयानी नाना नानी ने बहुत आवभगत की थी। पिताजी ने उनके पास बैठकर उनकी परेशानियों को जाना और जो बन पड़ा वह किया। यही तो चाहते हैं हमारे बुजुर्ग। उन्हें प्यार करना और उनसे आशीर्वाद लेना हमारा दायित्व बन जाता है। सुबह हम लोग निकले, 2 घंटे मैं मंडला पहुंच गए वहां अपने मित्र से मुलाकात कर, देर रात हम लोग घर पहुंच चुके थे।गाड़ी को बाहर ही पार्क किया क्योंकि उसका गैराज अभी बन नहीं पाया था। थकान होने के कारण हम लोग सुबह भी देर से उठे।
सुबह, जब कार में रखे जरूरी सामान निकालने आए तो पता चला कि कार बाहर नहीं है। मेरी तो नीचे की जमीन ही खसकती नजर आ रही थी ।आसपास नजर दौड़ाई और फिर पूरे मोहल्ले में इधर उधर सब जगह पता किया कार आखिर नहीं मिली। उसमें क्या-क्या सामान था हम दोनों ने बैठकर उसकी लिस्ट बनाई और अंत में कार गुमशुदगी की रिपोर्ट हमने लिखवाई उसकी फोटो भी हम लोगों ने ले रखी थी उसे अखबार में भी दिया इस प्रकार 2 दिन पूर्ण हो चुके थे, मगर पुलिस वालों का खोजी दल भी खोज नहीं पा रहा था। फिर भी उन्होंने आश्वासन दिलाया कि कल तक तो निश्चित ही कार मिल जाना चाहिए।
इस प्रकार मेरी पत्नी ज्यादा परेशान थी क्योंकि उसको और भी याद आ चुका था कि उस कार में और क्या-क्या कीमती सामान रखा था। तनाव और कुंठा से पत्नी ने मुझसे पूछा कि इतनी सारी कीमती चीजें और नई कार तो गायब है अब हम क्या कर सकते हैं। मैंने कहा यह तो कटु सत्य है कि हमारी कार चोरी चली गई है, अब हम परेशान रहे या खुश दोनों ही मामलों में कार की चोरी हो चुकी है। अब हमें अपना “नजरिया” और मूड चुनना है तो निश्चित रूप से हम लोग हर हाल में खुश रहने का विकल्प ही चुनते हैं।
5 दिन बाद हमारी कार आखिरकार मिल गई। मगर उसका सामान सब गायब था बहुत कुछ टूट फूट भी हो चुकी थी। जब मैं आंगन में खड़े होकर कार की हालत को देख रहा था तो इतने में पत्नी भी वहीं आ गई उसने भी पहले कार को देखा और फिर मुझे देखा। उसने मेरे मन के भाव को पढ़ लिया, उसने मेरी कमर में हाथ डाल कर कहा – प्रिय! हमारी कार को जो नुकसान होना था वो हो चुका है। इसलिए हमें अब खुश रहने का विकल्प चुनना है।मैंने जोर से हंस कर उसकी बात मान ली और फिर फिर हम लोगों ने बेहतरीन शाम का आनंद लिया।
[ ●समाजसेवी और चिंतक,तेज़राम शाक्य ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ के शुभचिन्तक हैं. ●लेखन में रुचि रखते हुए तेज़राम जी ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ के लिए नियमित रूप से अपनी रचनायें भेजते हैं. -संपादक ]
●●●●● ●●●●●