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बैगा बच्चियों के ‘बाबूजी’. समर्पण औऱ सेवा भाव से जीवनपर्यंत काम किया ‘बाबूजी’ के नाम से प्रसिद्ध-डॉ. प्रवीर सरकार.
■आदिवासी समाज़ में ‘बाबूजी’ के नाम से चर्चित-डॉ. प्रवीर सरकार नहीं रहे.
■अमरकंटक के ‘पोड़की’ में बैगा बच्चीयों के लिए खोले थे,एक अनोखा विद्यालय.
■साधारण से बने असाधारण बने-‘बाबूजी’.
■बैगा बच्चियों के पिता थे-‘बाबूजी’, याने डॉ. प्रवीर सरकार.
छत्तीसगढ़ । अमरकंटक । प्रवीर सरकार का जाना, इस आदिवासी बाहुल्य समाज के लिए एक बड़ी छति है। डॉ साहब ने जिस समर्पण और भाव से काम किया । वह इस स्वार्थी और लालच से भरे समय मे दुर्लभ है, हम उन्हें 1995 से जानते आये थे, उन्ही दिनों उन्होंने अमरकंटक के पोड़की में बैगा बच्चीयों के शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए एक अनोखे विद्यालय की स्थापन की, और जीवन पर्यन्त पूरे समर्पण के साथ अपने घर ,परिवार, समाज को छोड़ , इन बच्चीयों के लिए जनसहयोग से एक ऐसा उदाहरण पेश किया जो उन्हें असाधारण व्यक्ति में बदल देती है, मैंने अनगिनत आदिवासी बच्चों के उत्थान के लिए खोले गये संस्थान देखे है। पर प्रवीर सरकार को मैंने जिस मानवीय गुणों के साथ ओतप्रोत होकर काम करते देखा वह याद करने लायक है उन्होंने ने इन बच्चियों का जिस तरह से लालन पालन किया, वह आश्चर्य से भरा है। मैने देखा कि खाने पीने उठने बैठने बोलने पढ़ने सब मे एक लयात्मकता दिखाई दी , उन्होंने केवल औपचारिकता निभाने के लिए सेवा नही की, कई बार आश्रम की छोटी बच्चीयों को पिता की तरह नहलाने से लेकर खेलाने पढ़ाने जैसी अद्भुत कार्य किये, शायद इसलिए आश्रम की बच्चीयों ने उन्हें बाबूजी कहना शुरू किया, यहां तक आडम्बर से भरे इस समाज जिसे तोड़ने का साहस डॉ साहब ने उन्हें सिखाया । उसी से प्रेरित पोषित होकर, उनका अंतिम संस्कार के रूप में आश्रम की बच्ची शिवानी ने उन्हें मुखाग्नि दी, डॉ साहब इन बच्चीयों के साथ हमेशा खड़े रहेंगे , जब भी वे किसी रूढ़ि को तोड़कर एक नए विचार को हमारे सामने रखेंगी
इसलिए भी पूरे आदर के साथ यह कहने का मन हो रहा है कि इन बच्चीयों के बाबूजी अमर रहे ।
[ ●समाचार डेस्क,’छत्तीसगढ़ आसपास’. ●प्रिंट एवं वेबसाइट वेब पोर्टल, न्यूज़ ग्रुप समूह,रायपुर,छत्तीसगढ़. ]
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