कविता- सुधा वर्मा
●बादल
-सुधा वर्मा
[ रायपुर-छत्तीसगढ़ ]
बादल का एक टुकड़ा
घूमते घूमते
दूर जंगल तक चला गया।
करंज पीपल को निहारता रहा,
करंज ने कहा
क्यों बादल, काले से भूरे कैसे हो गये?
विशाल बादल,
तुम इतने छोटे कैसे हो गये?
बादल के आँखों में आंसू आ गये,
अपने आप को रोक नहीं पाया
दुखी मन से रोने लगा
उसके आँसू टपकने लगे।
पीपल का पत्ता कराहने लगा,
करंज की एक टहनी पूछ बैठी।
क्यों तड़फ रहे हो?
पीपल बोला
” मेरे पत्ते जल रहे हैं
यह पानी है या कुछ और?”
बादल बोला ” नाइट्रिक अम्ल है
यही तो धरती दे रही है मुझे
कारखानों से पैदा हो रहे
भूरे धुयें
मेरा दम घुटा जा रहा हैं।
कहां गया मेरा पानी?”
पीपल के भी आँसू टपकने लगे।
” न जाने क्यों इंसान
यह सब कर रहा है?
मुझे बरसने से डर लगता है
मुझे बरसने से डर लगता है।”
पीपल ने कहा
” तुम बरसना बंद कर दो।”
“नहीं मैं इतना वजन लेकर
कैसे उड़ सकता हूं?
मैं कहीं दूर जाकर बरसता हूं।
जहां कोई जीव न हो
बस कुछ घास हो।
कहां बरसू मैं
यही सोचता रहता हूं
यही सोचते रहता हूं।”
बादल रोते हुये
आगे चला गया।
पीपल नीम करंज उसे
जाते हुये देखते रहे।
[ ●रचनात्मक लेखन में निरन्तर सक्रिय सुधा वर्मा की पहली कहानी ‘कादम्बिनी’ में 1970 में प्रकाशित हुई थी. ●सुधा वर्मा की अब तक 18 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. ●’देशबंधु’ के छत्तीसगढ़ अंक ‘मड़ई’ का संपादन विगत 18 वर्षों से कर रही हैं. ●’छत्तीसगढ़ आसपास’ में सुधा वर्मा की दूसरी कविता है, ‘बादल’. ●अपनी राय से अवगत कराएंगे,तो खुशी होगी. -संपादक ]
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