लघुकथा
•शाम की चर्चा
•महेश राजा
शाम को बुधन गोलगप्पे वाले के ठिये पर सब जमा होते।दिन भर की थकान के बाद,व्यापारी, कर्मचारी, बुद्धिजीवी मित्र जमा होते।हल्की फुल्की बातो के बीच तीखे, खट्टे गोल गप्पों का लुत्फ़ उठाते।
चुनाव सर पर थे।तो बातो के दौरान भ्रष्टाचार आ टपका।एक मित्र कह पडा,क्या अन्ना हजारे के अनशन करने पर भ्रष्टाचार समाप्त हो जायेगा।
दूसरे ने तुरंत कहा,नहीं भाई,इतना पुराना कैंसर,जो रग रग मे व्याप्त है:इतनी जल्दी कैसे ठीक हो जायेगा।
एक बोला,मुझे तो नयी पीढी से बडी उम्मीद है।
तीसरा झल्लाया,भ ई ,हम तो किसी से एक रुपया भी नहीं लेते,पर हमे हर काम के लिये सुविधा शुल्क देनी होती है।
चौथा,इस देश का कुछ नहीं हो सकता।
पहले ने चुटकी ली,आप की टोपी लगा लो.कहीँ भी कुछ नहीं देना होगा।काम भी हो जायेगा।
पहले ने ऊसांस ली,ऐसा होना होता तो कब का हो जाता।गांधी टोपी आये तो बरसो हो गये.
पांचवां व्यापारी था,मजे लेते हुए बोला,भ ई चुपचाप गोलगप्पे के मजे लो।यह सब तो चलता ही रहेगा।
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