लघुकथा
•राजा औऱ प्रजा
•मिर्ज़ा हाफ़िज़ बेग
राजा ने हाथ जोङ कर महात्मा से कहा “हे महात्मा! मुझे बतायें कि आदर्श प्रजा कैसी होती है?”
महात्मा ने कहा, “हे राजन! यदि सच कहूंगा तो तू विश्वास नहीं करेगा और यदि झूठ कहूंगा तो मै अपने तप से हासिल ज्ञान से हाथ धो बैठूंगा। अतः मै तुझे एक कथा सुनाता हूँ, जिससे तू स्वयं ही निर्णय ले सके।”
राजा के गुरू उस संत महात्मा ने कथा यूं सुनाई।
एक राजा था जिसने राजा बनते ही देश की सेना का पुनर्गठन किया, और अपने शत्रुओं से खूब लोहा लिया और खूब विजय हासिल की। परिणामस्वरूप खूब लोकप्रियता पाई । जब राजा की लोकप्रियता अत्यधिक बढ़ गई और प्रजा यह विश्वास करने लगी कि उनकी सभी समस्याएं अब उस राजा के हाथों दूर होने वाली हैं। तब राजा ने सोने और चांदी से अपनी एक मूर्ति बनाकर शहर के चौक मे लगा दी और यह आदेश दिया कि, जो कोई इस प्रतिमा पर आक्षेप करेगा, वह दंड का भागी होगा।
कौन है जो राजाज्ञा की अवहेलना करे। फिर वह प्रजा जो राजा को पूजती थी, वह राजाज्ञा की अवहेलना क्योंकर करे?
किंतु एक दिन एक अबोध बालक ने उस प्रतिमा की ओर उंगली उठाई, “देखो-देखो, कौवे ने राजा के सर पर बीट कर दी।”
राजाज्ञानुसार उस बालक की वह उंगली काट दी गई जो देश की शान उस प्रतिमा की ओर उठी।
प्रजा ने कहा, “बिलकुल ठीक, हर वह उंगली काट देना चाहिए जो देश के सम्मान पर उठे।”
कुछ दिन बाद उस बालक ने दूसरे हाथ की उंगली से इशारा किया, और वह उंगली भी गंवा बैठा। प्रजा ने प्रदर्शन किया और नारे लगाये कि इस देशद्रोही को मृत्युदंड दिया जाये, किंतु राजा ने कानून के अनुसार ही दंड दिया।
अब की बार बालक ने हाथ से ईशारा किया और वह हाथ गंवा बैठा, फिर दूसरे हाथ से इशारा किया और दूसरा हाथ भी गंवा बैठा। फिर ज़बान से यही बात कही और ज़बान गंवा बैठा।
अब वह बालक मौन हो गया था।
कई वर्षों बाद जब राजा उस स्थल से गुज़रा तो अपनी प्रतिमा देख क्षुब्ध हो गया। उसका अपनी प्रजा से मोहभंग हो गया। उसने अपनी समग्र प्रजा के लिये मृत्युदंड घोषित कर दिया, फिर यह सोचकर कि आखिर बिना प्रजा के राजा किस काम का; उसने अपनी आज्ञा वापस ली और सन्यास लेकर वन को प्रस्थान किया।
“हे राजन, आशा करता हूँ, तू मेरा आशय समझ गया होगा।” महात्मा ने कहा।
“महात्मन, मै समझ नही पाया कि राजा का अपनी प्रजा से मोह भंग क्यों होगया।”
“मूर्ख! क्योंकि वह प्रतिमा तो पक्षियों की विष्ठा का ढेर बन चुकी थी।”
“लेकिन यह आपको कैसे ज्ञात हुआ?”
“क्योंकि, वह राजा मै ही हूँ।” महात्मा ने कहा ।
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