लघुकथा, डॉ. शैल चंद्रा
●उसका पेंशन
-डॉ. शैल चंद्रा
[ धमतरी, छत्तीसगढ़ ]
रेवती को बीमार हुए पूरे दो साल हो गए हैं।बिस्तर में ही पड़ी रहती है। चल -फिर नहीं पाती है। डॉक्टरों का कहना है कि लकवे की वजह से अब वो कभी उठ नहीं पाएगी।
आज रेवती की सहेली सत्यवती उससे मिलने आई है। रेवती की हालत देखकर उसे बहुत दुःख हुआ पर इस बात की तसल्ली हुई कि रेवती की दोनों बहुयें अपनी सास की सेवा में लगी रहती हैं।एक उसे नहलाती है तो दूसरी गर्मागर्म खाना खाने को देती है।समय पर दवाई वगैरह भी देती हैं।
सत्यवती ने रेवती की दोनों बहुओं से कहा-” धन्य हो बेटा, तुम लोग। बहुयें हों तो तुम लोगों जैसी। जो दिन-रात अपनी सास की सेवा में लगी रहती हो वरना आजकल की बहुयें तो सास की तरफ देखती भी नहीं।”
यह सुनकर छोटी बहू ने कहा,-” क्या करें मौसी, मजबूरी है। अगर हम लोग अपनी सास की सेवा नहीं करेंगी तो वे जल्द ही इस दुनिया से चल बसेंगी और वे चल बसीं तो उनको मिलने वाले पेंशन के पूरे पन्द्रह हजार रुपये भी चले जायेंगे।बस हम चाहते हैं कि हमारी सास लंबे समय तक जीती रहें ताकि हमें उनके पेंशन का पैसा मिलता रहे।
यह सुनकर सत्यवती आश्चर्य चकित रह गईं। वे सोचने लगी उसे तो कोई पेंशन नहीं मिलती अगर वह बीमार पड़ जाए तो उसका क्या होगा? वे अपना भविष्य सोचकर चितिंत हो उठीं।
[ ●शासकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,नगरी,जिला-धमतरी, छत्तीसगढ़ में प्राचार्य के पद पर पदस्थ डॉ. शैल चंद्रा, रचनात्मक लेखन में निरन्तर सक्रिय हैं. ●कई विशिष्ट सम्मानों से सम्मानित डॉ. शैल चंद्रा की कुछ महत्वपूर्ण पुस्तकें- ‘विडम्बना’,’इक्कीसवीं सदी में भी’,जुनून औऱ अन्य कहानियां’,गुड़ी ह अब सुन्ना होगे’,’घोंसला और घर’, औऱ ‘पापा बिज़ी हैं’. लघुकथा, कहानी,लेख और कविता में निपुण डॉ. शैल चंद्रा की ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ के लिए ये पहली लघुकथा ‘उसका पेंशन’ प्रस्तुत है, प्रतिक्रिया से अवगत कराएं. -संपादक ]
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