कविता- श्रीमती संतोष झांझी
●कविता की तलाश
-श्रीमती संतोष झांझी
सुबह सुबह जब सूरज
अपनी किरणें धरती पर लाये
साँझ पड़े हो लाल शरम से
क्षितिज के पीछे छुप जाए
ढूंढ लिया है तुझको यहीं
अनलिखी हुई कविता हो
साँझ सवेरे आसमान में
उड़ती चिड़िया जो गाये
ओस की बूंदों को छू छूकर
सिहर सिहर तितली जाए
छू लेता भंवर पराग पर
खुशबू न छूने पाये
डाल डाल पर बुलबुल हंसती
फुदक फुदक उड़ती जाए
तुम हो यहीं पर ढूंढ लिया
गीतों में बसी कविता हो
कलकल छलछल करती नदिया
मंद मंद बहती जाए
ज्यों हिचकी ली हो नदिया नें
मछली यूं डुबकी खायें
ज्वार चढे सागर को तब
जब चंद्रकिरण नभ पर छाये
बेचैनी से तड़प तड़प कर
पाने को उछाल जाए
ढूंढ लिया है लहरों पर
गीतों मे बसी कविता हो
नभ को बिजली की कटार
जब चीर चमक कर छा जाए
पावस की बूँदें जब तन से
आ मन पर भी छाजाएं
नाच उठे बूंदों की ताल पर
मोर पंख जब फैलाए
बिरहन की आँखों की बदली
जब आँसू बन झर जाए
नन्हीं मुस्कानों मे खिली
अनलिखी हुई कविता हो
●●● ●●● ●●●