नवरंग के बाल मुक्तक- डॉ. माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’
नवरंग के बाल मुक्तक
1. बंदर
छत के ऊपर आया बंदर
सबको नाच नचाया बंदर
मिश्का बाहर खेल रही थी
देख उसे मुस्काया बंदर
2.डॉगी
डॉगी भों भों करता है
रोटी देख ठहरता है
सिर रखता है पाँवों में
मिश्का से वो डरता है
3.चूहा
चूहा लड्डू खाता है
बिल्ली से घबराता है
पकड़े जाने के डर से
बिल में जा छिप जाता है
4.भालू
आज मदारी भालू लाया
भीड़ जुटाने ढोल बजाया
बच्चे ताली ठोंक रहे हैं
बोल रहे हैं कालू आया
5.बिल्ली
बिल्ली छिपकर आएगी
दूध मलाई खाएगी
म्याऊँ म्याऊँ बोलेगी
मिश्का को फुसलाएगी
6.शेर और हाथी
सर्कस में आया है शेर
बच्चों को भाया है शेर
अपने साथी लोगों में
हाथी को लाया है शेर
7.तोता
पिंजरे में इक तोता है
बैठे बैठे सोता है
मिर्ची खाने की ख़ातिर
चिल्लाता है रोता है
8.तितली और भौंरा
तितली जब भी आती है
फूलों पर मँडराती है
शर्माती है भौंरों से
चुपके से उड़ जाती है
9.ऊँट
गर्दन ऊँट उठाता है
फिर पत्तों को खाता है
लंबे लंबे डग भरकर
दूर तलक वह जाता है
10.घोड़ा
घोड़ा घास चबाता है
रह रहकर इतराता है
पूँछ हिलाकर बस्ती में
बच्चों को बहलाता है
11.गैया
गैया बैठ रँभाती है
मिश्का ख़ुश हो जाती है
अपने कोमल हाथों से
रोटी रोज़ खिलाती है
12.गौरैया
गौरैया जब आती है
चूँ चूँ शोर मचाती है
सोते सोते बिस्तर से
फिर मिश्का उठ जाती है
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