रचना आसपास- सरस्वती धानेश्वर ‘सारा’
●चलो एक नई मुहिम चलाएं हम
-सरस्वती धानेश्वर ‘सारा’
[ भिलाई-छत्तीसगढ़ ]
एक फकीर ने कहा था कि, इंसानियत माफ कर देती है,सब गुनाहों को,आज क्यों न उसकी इस बात को आजमाएं हम।
चलो संग मिलकर एक नई मुहिम चलाएं हम
चलो किसी भटके हुए राही को रास्ता दिखाएं हम।
यूं तो शून्य का कोलाहल अब जीने नहीं देता
चलो कि एक बार सबके संग मुस्कुराएं हम।
गलतियां, गुस्ताखियां,गमें वफाएं, नाराजगी,कयी मर्तबा कर चुके हम,
क्यों न एक बार आपस में खो जाएं हम।
जो बेकसूर होते हैं,वे सज़ा भुगत लेते हैं गुनाहों की
अब क्यूं न गले कसूरवार को लगाएं हम
इंसान की फितरत है वक्त पर इल्ज़ाम लगाने की
क्यूं न बीते हुए लम्हों को भूल जाएं हम।
कट ही जाएंगे जिंदगी के टेढ़े-मेढ़े रास्ते, क्यूं न इन तन्हा रास्तों की दूरियों को मिटाएं हम।
यूं उम्र बीत जाएगी, इल्जामों की पर्दानशीं में
इंसानियत माफ कर देती है सब गुनाहों को, क्यूं न इस रस्मों रीत को इक बार आजमाएं हम।
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