31मार्च अभिनेत्री मीना कुमारी की पुण्यतिथि पर विशेष
●आलेख,जयदेब गुप्ता मनोज़
[ धनबाद-झारखंड ]
अपने जमाने की मशहूर अभिनेत्री मीना कुमारी के स्वर्गवासी हूए वर्षो बीत गए किन्तु दर्शको के मानस पटल पर आज भी वे छायी हुई है इसका उदाहरण है उनकी अभिनीत फिल्म बैजू वावरा
शारदा साहेब बीबी ओर गुलाम ओर पाकीजा आदि फिल्मे जब कभी सिनेमा हॉल मे प्रदर्शित होती है दर्शक उसे फिरसे देखना नही भूलते ,उनके अभिनय मे वह जादू था कि आजकी उदीयमान नायिका उन्हे अपना आदर्श मानती है।
पुरे 32 वर्षोतक फिल्मउ्दधोग मे छायी रहनेवाली मीना कुमारी का फिल्मोउद्धोग मे प्रवेश 8 वर्षो की उम्र मे ही हो गया था।
बादमे उन्होने फिल्मो के लिए गीत गाना भी शुरू कर दिया था।
उन्होने 1947 मे बनी फिल्म पिया घर आजा पिंजरे की पंछी तथा देवर भाभी के लिए गीत गाये ओर उनकी गाये सभी गीत काफी लोकप्रिय हुए।
सन 1940 मे बतौर नायिका मीना की फिल्म प्रदर्शित हूई थी बच्चो का खेल इस फिल्म मे
मीना के अभिनय को दर्शको ने काफी सराहा।
मीना की अभिनय क्षमता को देखते हूए इसी वर्ष यानी 1940 मे दो ओर फिल्मे एक ही भूल तथा पुजा के लिए अनुवंधित कर लिया। इन फिल्मो के प्रदर्शित होते ही मीना स्टार बन गई।मीना की एक विशेषता यह भी थी कि वह हर भूमिका को चुनौती पूर्ण मानती थीओर कभी भूमिका करती नही बल्कि भूमिका को जीती थी। उनकी सफलता का यही राज था।
1941 नई रौशनी
1950 मगरूर महिमा हमारा घर तथा हमारा घर
1951 मदहोश ओर हनुमान
1952 बैजू वावरा अलाउद्दीन का चिराग
1953 दानापानी परिणीता फुटपात नौलखा हार ओर दो बीघा जमीन
1954 इल्जा़म तथा चॉदनी चौक
1955 बंदिश तथा आजाद
1956 एक ही रास्ता बंधन शतरंज ओर नया अंदाज़
1957 शारदा ओऱ मिस मेरी
1958 फरिस्ता
1959 चार दिन चार राहे चिराग कहॉ रौशनी कहॉ सट्टा बाजार शरारत अर्द्धांगिनी
1960 दिल अपना प्रीत पराई कोहिनुर बहाना * जिंदगी ओर प्यार का सागर
1961 भाभी की चुडिया
1962 मै चुप रहूंगी साहेब बीबी ओर गुलाम ओर आरती
1963 दिल एक मंदिर अकेली मत जाईयो तथा किनारे किनारे
1964 मै भी लडकी हू साझ ओर सबेराएंव चित्रलेखा
1965 काजलपूर्णिमा* तथा भीगी रात
1966 पिंजड़े की पंछी फुल ओर पत्थर
1967 मझली दीदी चंदन का पालनाओर बहू बेगम
1968 बहारो की मंजिल ओर अभिलाषा
सन 1968 के मध्य मे ही मीना कुमारी बीमार हो गई ओर एकबार जो बिस्तर पकडी सन 1972 मे जाकर स्वस्थ हुई।
मीना कुमारी दिनो दिन शोहरत की मंजिल पर पहूंचती रही लेकिन उनकी जिंदगी कभी भी खुशगवार नही रही हर वक्त खोई खोई उदासियो मे जीने वाली मीना के अभिनय मे भी दर्दीलापन ही। झलकता रहा।
सन 1971 मे प्रदर्शित फिल्म पाकीजामे तो जैसे उसने अपनी वास्तविक पीडा को बडी स्वाभाविकता के साथ उभारा था।
संवाद की उक्त पंत्कियो को याद कीजिये हम वो लाशे है
जिनकी कब्रे खुलीपडी रहती है*।
इस संवाद को अभिनय के रूप मे पर्दे पर उभारते वक्त शायद मीना को अभिनय की कोशिश नही करनी पडी थी कयोकि उस समय मीना पुरी तरह बीमार थी उसकी जिंदगी की सारा दर्द सारा टीस स्वाभाविक रूप मे ज्वालामुखी बनकर फूट पडी थी।
मुस्कुराहटो के पीछे भी पीडा
पाकीजा की साहबजान के कष्ट को अन्दाजा लगा लीजिए जब वह सबकुछ रचाए रखने की कोशिश करती है।
फिल्म दुश्मन की उस गम्भीर बिधवा को याद कीजिये जिसकी मुस्कुराहटो के पीछे भी पीडा थी ।
फिल्म शारदा की ममतामयी मॉ को कोन भूल सकता है।
1972 मे मीना जब स्वस्थ हूई उस समय अभिनय का जादू उसमे बरकरार था।
बिस्तर से उठते ही चार फिल्मे क्रमश दुश्मन मेरे अपने सात फेरे ओर गोमती के किनारे मे अभिनय किया था। उनकी फिल्म गोमती के किनारे के निर्माता निर्देशक सावन कुमार टांक(संगीतकार उषा खन्ना के पति) अंतिम दिनोमे उसके सर्वस्व रहे जो नए नए फिल्मोमे आए थे।उन्होने मीना की सेवा सुश्रुषा मे कोई कमी नही की ।सावन कुमार के दिल रखने के लिए उनकी फिल्म गोमती के किनारे मे अभिनय भी किया और रूपये पैसे से भी सहायता की थी। उसके बाद तो वह इस दुनिया से ही विदा हो गयी। मीना का कमाल अमरोही से वैवाहिक जीवन कभी सुखमय नही रहा बादमे दोनो अलग रहे परन्तु यह कैसी बिडम्वना कि देश विदेश के करोडो दरश्को का दिल जीतने वाली मीना कुमारी कभी सुख चैन की जिन्दगी नही बीता सकी।शुरू शुरू मे मीना कमाल अमरोही की प्रशंसक थी बाद मे उनकी शादी हूई लेकिन नियती को यह मंजूर नही था अमरोही मीना को सताने लगे और अंत मे मीना को घर से निकाल दिया मीना कुमारी पर संकट का बादल ही गिर पडा ओर वे गम भूलाने के लिए शराब पीने लगी और शराब उन्हे पीने लगा ।
सन 1952 मे फिल्म बैजू वावरा
1953 मे परिणीता
सन 1962 मे साहेब बीबी ओर गुलाम
1965 मे काजल के लिए सर्व श्रेष्ठ अभिनय के लिए फिल्मफेयर पुरस्कारोसे सम्मानित किया गया था।
31मार्च 1972 को अपने करोडो चाहनेवालो ओर प्रशंसको को शौक विह्वल अवस्था मे छोडकर मीना ने शायद अपनी ही शायरी की इस पंक्तियॉ को चरितार्थ करते हुए इस दुनिया को अलविदा कह दी।
जिंदगीभ कया इसी को कहते हैं जिस्म तन्हा ओर जां तन्हा
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