श्रद्धांजलि : ●कवि मुकुंद कौशल.
•कवि हार गया
-डॉ. बलदाऊ राम साहू
कवि जंग जीतने के लिए लिखता है
कविता
उसकी लेखनी में
आस और विश्वास के
होते हैं भाव
वह भरोसा दिलाता है सबको
समय बदलेगा
और लौट आएंगे
‘भिनसार’ बनकर
खुशहाली भरे दिन।
कवि अंधियारे को जीतने के लिए
‘लालटेन जलने दो’ का
करता है उदघोष
और ‘शब्द क्रांति’ का
बोता है बीज
इसी विश्वास के साथ
कि कल ‘गीतों का चंदनवन’
उगेगा और
‘देश हमारा भारत’
फिर से विश्व गुरु बन जाएगा।
कवि पीरा को खुद पी जाता है
और कहता है
‘घाम हम सँगवारी’
वह अपनी नहीं
दूसरों की करता है चिंता
उसकी चिंता में होते हैं
‘बिन पनही के पाँव’
वह नहीं डरता ‘केरवश’ से
बल्कि सबके सामने लाता है
उसकी कालिख
समाज को शोषण मुक्त
बनाने के लिए।
कवि निकलता है जंग जीतने
वह चल पड़ता है
नया समाज गढ़ने के लिए
वह सपने गढ़ता है
परिंदे आसमान में
निर्भय होकर उड़ें
इसीलिए तो कहता है
‘मोर ग़ज़ल के उड़त परेवा’
और एक दिन परेवा बनकर
स्वयं उड़ जाता है
अपनों को छोड़कर
बहुत दूर और
समा जाता अनंत सत्ता में
लगता है कवि
जीत कर भी हार गया।
●कवि संपर्क-
●94076 50458
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