■रचना आसपास : ●सच्चा प्रेम •तेज़ राम शाक्य
मैं जब उससे पहली बार मिला तो वह मात्र तीन चार साल की सुंदर, भोली, मासूम चेहरा लिए मुझे एक गिलास पानी और एक टेबलेट जब मुझे दी तो एक अजीब एहसास की अनुभूति हुई थी। मैं उस समय 29 वर्ष का रहा होऊंगा और मैं बुखार में पड़ा था, मुझे यह बिल्कुल भी अनुमान नहीं था कि यह छोटी सी लड़की मेरे जीवन में परिवर्तन ला देगी। वास्तव में उसकी मम्मी पड़ोसी में ही रहती थी हम दोनों यानी उसकी मम्मी और मैं बातों ही बातों में गहरे दोस्त बन गए थे, पता ही नहीं चला कि वह दोस्ती कब परवाह में बदली और फिर प्रेम में ।कुछ ही समय में हम ने शादी कर ली और फिर हम तीनों ने जिंदगी का नया सफर प्रारंभ किया। कहते हैं ना प्रेम अंधा होता है वह जात-पात, धर्म, आयु आदि के परे होता है हम लोगो ने बगैर किसी की परवाह किए और मैंने इस बात को बिल्कुल महत्त्व नहीं दिया कि वह 1 बच्चे की मां भी है हमने शादी कर ली। पहले तो मैंने उस मासूम के साथ दोस्ती और फिर एक अच्छे पिता की भूमिका अदा की उसे बहुत प्यार दिया, मगर मेरे मन में एक बात खटकती रहती थी कि सौतेले पिता काल्पनिक या शायद वास्तविक रूप में दुष्ट होते हैं।मैं इस धारणा को कमजोर करना चाहता था, इसलिए उसकी गुणों को पहचान कर उनकी सराहना करने लगा ।मैं समझ पा रहा था कि उस लड़की के भीतर एक बहुत करुण और ममतामयी महिला छिपी हुई है। मगर फिर भी मैं डर रहा था कि कहीं उस पर ज्यादा कड़ाई की तो वह कह देगी कि मैं उसका वास्तविक पिता नहीं हूं ।मैं बहुत सोच समझ कर कदम उठा रहा था। मैं इसी वजह से जरूरत से ज्यादा ढील देने लगा उसकी किशोरावस्था के दिनों में मैं भावनात्मक रूप से उससे अलग हो रहा था ।वह अपनी पहचान खोज रही थी और इधर मैं भी। हमारे बीच की निकटता को धीरे-धीरे खत्म होने से मैं दुखी था।
अचानक एक दिन वह मेरे पास आई उसके हाथ में स्कूल के वार्षिक कार्यक्रम का आमंत्रण था उसने मुझे कार्ड देते हुए बोला पापा! आप हमारे इस कार्यक्रम को देखने अवश्य आएं। उसने जैसे ही पापा कहा मैं रोमांचित हो उठा। बहुत दिन बाद यह मीठी आवाज मुझे सुनने मिली थी मैंने उसे गले से लगाया और बोला मैं जरूर आऊंगा बेटे! उस दिन मैं समय से पहले ही तैयार हो गया और श्रीमती जी को भी जल्दी तैयार होकर चलने को कहा। मुझे श्रीमती जी से यह पता चल गया था कि उसने कार्यक्रम में भाग लिया है उसका एकल नृत्य था। मैं उसे देखने के लिए बहुत लालयित था। हम लोग हाल में पहुंच चुके थे।नियत स्थान पर बैठकर उसके ही डांस को देखने का इंतजार करने लगे। चार पांच कार्यक्रम के बाद उसका नाम जैसे ही पुकारा गया हम लोग सजग हो गए उसकी प्रस्तुति बहुत अनुठी थी ।सब लोग उसके डांस को देखकर सन्न रह गए, डांस खत्म होते ही तालियों की गड़गड़ाहट के साथ हाल गूंजने लगा ।मेरी आंखों से खुशी के आंसू छलकने लगे। उसके बाद उसने माइक हाथ में लिया और बोलना शुरू किया, मैं धन्यवाद देना चाहूंगी अपनी कोरियोग्राफर मैम को जिन्होंने मुझे इतने योग्य बनाया मैं अपने प्राचार्य और शिक्षकों को भी धन्यवाद देना चाहूंगी जिन्होंने मुझे इस कार्य के लिए प्रेरित किया और चुना। और अंत में अपने पापा को कहना चाहूंगी कि वह दुनिया के सबसे अच्छे पापा हैं मैं उन्हें हृदय से बहुत प्यार करती हूं इसका जरा भी ध्यान नहीं था कि वह इतनी मर्मस्पर्शी बात कहेगी। मेरी आंखों से तड़ तड़ आंसू टपकने लगे। मैं अत्यंत भावुक हो गया मैं उठा और स्टेज की ओर बढ़ा। सबका ध्यान मेरी ओर था,n स्टेज पर जाकर मैंने उसे गले से लगा लिया। मैं समझ पा रहा था कि इतनी बड़ी बात सबके सामने स्टेज से कहना कितना हिम्मत का काम था?
इसके बाद हमारे संबंधों की गहराई बढ़ गई मैं समझ गया था कि सौतेले पिता होने के बारे में मुझे अब डरने की जरूरत नहीं है। “सच्चा प्रेम” तो हृदय की गहराइयों से होता है, जो उसने मुझे किया और अब मैं उसको कर रहा हूं।
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