11 अप्रैल- कुन्दनलाल सहगल के जन्मदिन पर विशेष
●आलेख,जयदेब गुप्ता मनोज़
[ धनबाद-झारखंड ]
लता मंगेशकर, मो,रफी, किशोर कुमार ओर मुकेश का बचपन से
आदर्श रहे कुंदन लाल सहगल का जन्म 11 अप्रैल 1904 जम्मू कश्मीर के नवा शहर मे माता केशरीबाई कोर ओर पिता अमर चंद सहगल के घर हुआ था।
बचपन से ही गाने_बजाने मे शोक रखनेवाले बालक कुंदन भी अन्य कुछ कलाकारों की तरह पढाई _लिखाई मे ध्यान ना देकर हर समय दोस्तो के साथ गाना _बजाने का का काम करते थे।
हर समय गीत संगीत मे ध्यान रहने के कारण बचपन मे ही सहगल के माता_पिता संगीत के गुरू सुफी संत सलमान यूसुफ से शिक्षा प्राप्त की ।
सुफी गुरू को पहले ही आभास हो गया था कि यह बालक एकदिन बडा गायक बनेगा ओर हुआ भी एैसा।
गीत संगीत मे शिच्छा लेते समय कुंदन लाल हाथ ख़र्च के लिए रेलवे मे टाईम कीपर की नौकरी भी की थी बादमे रेमिगरन नामक टाईप राईटिंग कम्पनी मे सेल्यमैन की नौकरी की भी की थी।
फिल्मउद्घोग शुरू शुरू मे कोलकाता में हुआ करता था बादमे कई वर्षोबाद बाम्बे अभी मुम्बई मे स्थापित हुआ।
कोलकाता मे न्यू थियेटर के मालिक स्व बिरेंदर नाथ सरकार यानी *बी,एन,सरकार की नजर कुंदन पर पडी उन्हने तुरंत 200 रूपये मासिक बेतन पर अपने यहा काम पर रख लिया, वही पर संगीतकार रायचंद बोराल से मुलाकात
बोराल साहब ने कुंदन के प्रतिभा से प्रभावित होकर 1932 पहलीबार मोहाब्बत के आसु फिल्म मे काम करने का मौका दिया उसी वर्ष वतौर कलाकार दो ओर फिल्मे सुबह का सितारा ओर जिंदा लाश मे काम मिला फिल्म प्रदर्शित हुई लेकिन कुंदन की कार्य की कोई पहचान नही हुई लेकिन 1933 मे आई फिल्म पुराण भक्त मे अपनी गायकी की छाप छोड गए ओर गायक के रूप मे अपनी पहचान बनाने मे सफल हूए।
1933 मे ही यहूदी की बेटी चण्डीदास ओर रूपलेखा प्रदर्शित हुई इन फिल्मो मे गाना गाने के बाद सहगल साहब कभी पीछे मुडकर नही देखा
1936 मे बंगला के महान उपन्यास कार शरद चंद चट्टोपध्याय के बंगला उपन्यास पर आधारित देेवदास बनी थी इस फिल्म के निर्देशिक स्व, पी,सी,बरुआ थे उन्होने वतौर अभिनेता कंदन को काम करने का मौका दिया इस फिल्म के बाद तो कुंदन रातो रात स्टार बन गए।
न्यू थियेटरों के कुंदन ने कई बंगला फिल्म मे भी काम काम किया था।कोलकाता के *न्यू थियेटर के लिए
1937 मे प्रेसीडेन्ट
1938 मे साथी ओर स्वीट सिंगर
1940 मे जिंदगी फिल्म मे अभिनय ओर गायकी मे सहगल की प्रतिभा उनकी शोहरत बुलंदी पर पहूच गया था।।
1941 मे कुंदन न्यू थियेटर छोरकर बम्बई के रंजीत स्टुडियो से जुड गए ।
1942 मे सुरदास ओर तानसेन मे काम किया। ओर दोनो फिल्मे वाक्स आफिस काफी सफल रहा फिर भी 1944 मे फिरसे वापस कोलकाता न्यू थियेटर से दौवारा जुड गए एंव माई सिस्टर मे अभिनय ओर गायन का कार्य सम्भाला।
गैर बंगला गायको मे सहगल साहब पहला गायक थे जिन्होने *रविंन्द्र संगीत गाए है।
आवाजो के बादशाह मो,रफी साहब की इच्छा थी कि सहगल साहब के साथ गाना गाए ।उस समय महान संगीतकार नौशाद साहब की फिल्म शांहजहॉ के संगीत निर्देशन मे व्यास्त थे।
रफी साहब ने नौशाद से। कहा मुझे भी सहगल साहब के साथ गाना गाने का मौका दे, नौशाद असमंजस से पड गए फिर भी अपना वादा पुरा। करते। हूए इसी फिल्म के एक गीत _*मेरे सपनो की रानी रूही। रूही,,,,मे सहगल साहब मो, रफी को गाना गाने का मौका दिया इस गाने मे अन्य गायको के साथ रफी को भी कोरस मे गाने का मौका दिया।
इस गीत के आखरी लाईन मे *रूही रूही मे रफी की आवाज है।
कोकिला कंठी भारत रत्न से सम्मानित लता मंगेशकर जी भी सहगल साहब के बहुत। बडी भक्त हैं।
लता जी कभी सहगल साहब के साथ गाना नही गाया लेकिन उनके स्वर मे कई गाने गाए है।
किशोर कुमार ओर मुकेश दोनो ही सहगल साहब के बहुत बडे भक्त थे दोनो गायको ने अपनी शुरूवाती दौड मे सहगल के नकल करते थे इसका साफ झलक पुरानी फिल्म पहली नजर मे मुकेश का गाया हुआ गाना दिल जलता है तो जलने दे ओर किशोर कुमार का गाया। मरने की दुआए कयू करू कभी सुनिएगा पुरी तरह सहगल के नकल करते हूए गाया।
जब सहगल साहब की बात चल रही है प्रसिद्ध गायक सी,एच,आत्मा साहब को कैसे भूल सकते इनका गाया हुआ गाना सुनिएगा पुरी तरह सहगल साहब के नकल करते हूए गाते थे।
सहगल साहब अपनी फिल्मी कैरियर मे दो दशक मे कुल 36 फिल्मो मे अभिनय किया है जबकि 142 फिल्मो मे गाना गाया है ओर 43 गैर फिल्मी गाना गाया है। जिसमे बंगला रवींद्र संगीत भी शामिल है।
सहगल साहब विना शराब पिए कभी गाना नही गाया लेकिन संगीतकार नौशाद साहब पहलीबार फिल्म शाहजहाँ मे सहगल से बिना शराब पिए गवाए थे ।
सहगल के कुछ अमर गीत
बाबुल मोरा नैहर छूटल जाए
दुनिया रंग रंगीली बाबा
दिया जले
करू किया आस निरास
इक बंगला बने प्यारा
सोजा राजकुमारी
जब दिल ही टूट गया
अपनी दिलकश आवाज से श्रोताओ दिलमे आज भी राज कर रहे है सहगल साहब।
एशिया के सबसे लोकप्रिय रेडियो स्टेशन रेडिओ सिलोन मे आज भी सुबह 7 बजके 55 मिनट पर सहगल साहब के एक गीत बजाकर उन्हे श्रधांजलि दी जाती है।
आज सहगल साहब हमारे बीच मौजूद नही है 18 जनवरी 1947 को केवल 47 वर्ष की उम्र मे इस दुनिया से अलविदा कह गए।
अपने ही गाए हूए गाना__जब दिल ही टूट गया अब जी के कया करेंगे,,,,,,