■चार लघुकथायें : ●डॉ. माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’.
1.सेवा निवृत्त
हर माह बटुए में चुपके से तीन हज़ार रुपए दैनिक ख़र्च के लिए रखकर पुत्र का फ़र्ज़ पुत्र वधू निभा रही है।कभी उसने सेवा निवृत्त होने का अहसास नहीं होने दिया। ज़िदगीभर की कमाई है पुत्र वधू निलोफ़र।
2.आम का पेड़
माँ,बाबूजी ,दादा एवं दादी सभी एक एक करके साथ छोड़ गए।आँगन में खड़ा आम का पेड़ सबके होने का अहसास दिलाता है जब मैं उसकी छाँव तले सुस्ताने के लिए बैठता हूँ।
3.आत्मग्लानि
सुबह शादी में बहुत से लोग आए।ख़ूब नाच-गाना हुआ ,लंच के बाद सभी लौट गए।शाम को अचानक स्वास्थ्य खराब होने पर पड़ोस के जुगनू ने जिसे ग़रीब होने के कारण निमंत्रण नहीं दिया गया था चिकित्सालय पहुँचाया एवं रातभर निकट बैठा रहा।मेरी आँखों में आत्मग्लानि के भाव थे वहीं उसकी आँखों में बचपन की निच्छल मित्रता का भाव।
4 नेकी का फल
पुत्रों की बुरी आदतों का ख़मियाज़ा भुगतने एवं कर्ज़ चुकाने में सामान सहित पूरा मकान नीलाम हो गया।पिंजरे में बंद तोते को जिसे घायल अवस्था में घर लाकर बड़े जतन से पाला था को चिल्लाता देख रामधन उसे आज़ाद कर दिया।शाम को नदी किनारे बदगद के नीचे जब वह अपनी लाचारी पर आँसू बहा रहा था तभी चोंच पर एक रोटी दबाकर तोता उसके पास आया और गोद में बैठ गया।रामधन सोचने लगा काश वह घर में और तोते पाल लिया होता।
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