कविता आसपास- •अमृता मिश्रा
4 years ago
433
0
●रिश्ता
-अमृता मिश्रा
[ भिलाई-छत्तीसगढ़ ]
तकलीफ़ देता है वो रिश्ता
जब सहेजती हूँ,
संभालती हूँ,
बाँधती हूँ,
उम्मीद के धागों से,
और आख़िरी छोर तक
आते-आते
धागे का एक दूसरा छोर,
कर उठता है बगावत,
अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए,
अपनी कुत्सित चाल में,
बिखेर देता है उन मोतियों को,
जिसे जोड़ते समय,
अपनी धड़कनें भी,
बाँधी थी मैंने
एक-एक कर गिनते हुए।
आह! कुछ भी शेष न बचा।
बिखरे केवल मोती ही नहीं थे
उनके संग-संग,
मेरी साँसें भी,
टूटती गयी थीं।।