■मातृत्व दिवस पर विशेष,लघुकथा- •महेश राजा
●माँ : जिंदगी का इम्तिहान
-महेश राजा
[ महासमुंद-छत्तीसगढ़ ]
बच्चों के इम्तिहान का आज आखिरी दिन था।बच्चे खुश थे,अबसे दिपावली की छुट्टियां आरंभ होने वाली थी।दुःखी थी तो स्कूल की आया;ममता।वह एक कोने मे बैठी बच्चों को खेलते हुए देख रही थी।अब से स्कूल मे विरानीयत छा जायेगी।
यह बात नहीं थी कि उसका कोई सगावाला न था।उसके दो बेटे थे,जो अलग अलग शहरों मे अपने परिवार के साथ रहते थे।जब किसी को पैसोँ की जरूरत होती या कभी मां की याद आती।नहीं तो कोई मां को त्यौहार पर भी न बुलाते थे।पति की मृत्यु के बाद उसने मेहनत मजदूरी कर बच्चों को पढाया लिखाया और छोटी मोटी नौकरी तलाश कर सामान्य परिवार मे शादी कर दी।सभी को वह खुश देखना चाहती थी।उसे किसी से कोई शिकायत न थी।वह जानती थी.आज का जमाना ऐसा ही है।बहुएं साथ रहना नहीं चाहती।सब घर का यही किस्सा है।उसका पूरा जीवन इम्तिहानों से गुजरा था।
अपने नसीब का दोष मान कर नगर के एक प्रतिष्ठित स्कूल मे आया की नौकरी करती,इन बच्चों के बीच अपना मन बहला लेती।कभी पोते पोतियों की याद आती कि वह उन्हें ठीक से गोद मे खिला न पायी।इन्हीं बच्चों को अपना मान खुश रहती।
तभी एक बच्चे के रोने की आवाज से उसकी तंद्रा भंग हुई।वह उस बच्चे को गोद मे बिठाकर चुप कराने लग गयी।सब बच्चे उसे बहुत चाहते थे।उसके साथ घुलमिल गये थे।उसे रोना आ रहा था।दिन भर बच्चों की देखभाल, उनका खाना पीना,साफ सफाई मे मन बहल जाता।।अब कल से वह क्या करेगी…यह सोच उसे सता रही थी।
मैडम ने आवाज दी।कि छुट्टी का समय हो गया।बच्चों को भरी नजरों से निहार कर बेल बजाने चली गयी।आंखो से आंसू अविरल बह रहे थे।मैडम ने यह देखा,उसके भाव समझ कर कंधों पर हाथ रख कर सांत्वना दी।गेट खोल कर वह यह ध्यान रख रही थी कि किस बच्चे का रिक्शा अब तक नहीं आया।इतने मे देखती है कि बच्चों की टोली ने उसे घेर लिया,उनके हाथों मे एक पैकेट था।सब बच्चे एक स्वर मे चिल्ला रहे थे,बाई मां इस बार दिपावली मनाने वह उनके ही घर आये,हमने अपने पापा मम्मी से पूछ लिया है।वे भी यही चाहते है।उसने सब बच्चों को अपनी ममतामयी बांहों के घेरे मे ले लिया।भरे गले से कहा,आऊंगी,बच्चों, जरूर आऊंगी।उसका गला रूंध गया था।बच्चे जिद करने लगे,नहीं..।अभी चलो ,हमारे साथ।उसने बच्चों को समझाया,स्कूल की रखवाली, सफाई का काम उसके जिम्मे है।समय निकाल कर वह एक एक कर सबके घर आयेगी।बच्चों ने उससे प्रामिस लिया।सबसे छोटी सिद्धि ने जब उसके हाथ मे पैकेट दिया,तब वह बोली,यह क्या है बच्चों।ईस बार सिक्स क्लास का विकी बोला, माँ,यह साडी है।हम सबने अपने जेब खर्च से पैसे बचा कर ली है।ना मत कहना।
उसने ना कही।यह मै कैसे ले सकती हूँ।इस पर मैडम बोली,-“ले लो बाई.बच्चे इतने प्यार से लाये है।उसने एक एक बच्चे को चूमा।जाते समय सिद्धि ने कहा,देख लो बाई अगर तुम घर नहीं आयी तो मै पटाखे नहीं चलाऊँगी।”
“‘नहीं नहीं, मेरे बच्चों मै जरूर आऊंगी।”
अत्यधिक खुशी से छलक आये आंँसुओं को उसने छलक जाने दिया।
सब बच्चे चले गये।गेट पर खड़ी दूर उड़ती धूल को वह देख रही थी।जीवन मे पहली बार उसे लगा कि वह अकेली नहीं है।इतने सारे बच्चों की माँ थी,वह।उसके जीवन का इम्तिहान अब समाप्त हो गया था।
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