■कविता आसपास : •डॉ. सोनाली चक्रवर्ती.
●कहाँ गए सारे रंग
-डॉ. सोनाली चक्रवर्ती
[ भिलाई-छत्तीसगढ़ ]
सुनो
जब तुम मेरे पास होते थे
आसमान गुलाबी हो जाता था
जब तुम मुझे देखते थे
तुम्हारी आँखों में जो पलाश खिल उठते थे
वही मेरे गालों पर
उतर दहक जाते थे
तुम मेरे बारे में सोचते
मन मेरा हरा हो जाता
तुम्हारी आवाज सुनते ही
जाने कहाँ से पीले फूल बिखर जाते
तुमने ने जब पहली बार
मेरा हाथ पकड़ा था
मेरी आँखों के आगे
पूरे आसमान में रंग बिरंगी
ओढनियाँ लहराने लगी थी
पता है जब भी
तुम मेरे साथ होते थे
बैंगनी बारिश होने लगती
हवाओं का रंग सफेद
दूधिया हो जाता
मन के कहीं भीतर
नारंगी लहरें सी उमड़नें लगतीं
उसकी छोटी छोटी नीली नावें
जानें कब आसमान में जाकर
तारे बन जाती थीं
अब जब से तुम रूठे हो
मुझसे बात नहीं करते
फोन की घंटी नहीं बजती
दरवाज़े पर दस्तक नहीं होती
सब रंग अदृश्य हैं
आश्चर्य!
अब इस पृथ्वी पर
एक भी रंग नहीं
●कवयित्री संपर्क-
●98261 30569
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