■सुधा पंडा की कलम से
●यशोधरा के सवाल
-सुधा पंडा
[ घरघोड़ा, रायगढ़, छत्तीसगढ़ ]
शिशु-साथ मुझे सोये छोड़ चले,
मुझसे मुख क्यों मोड़ चले ?
जब त्यागना ही था,
तो अंगीकार ही क्यों किया?
और जब अंगीकार किया,
तो उसे निभाया क्यों नहीं?
आर्य! क्या मैं आपके पथ की बाधा बनती ?
यदि, कहकर जाते मुझे।
सहज एक प्रश्न कौंध जाता है मन में ,
कि, क्या मनु- सतरूपा साथ थे नहीं वन में ?
आप पिता हैं, निष्ठुर हो सकते हैं,
पर मैं जननी, इतनी निष्ठुर कैसे हो सकती हूं ?
अमृतपान कर रहा,
शिशु को अकेले कैसे छोड़ सकती हूं?
जन्म दिया है पुत्र को,
तो पालन से कैसे मुख मोड़ सकती हूं?
आर्य,आप करें तप वन में,
मैं भी तप क्यों न करूं महल में?
तप तो तप होता है,
चाहे वह वन में हो या भवन में।
क्या अंतर पड़ता है?
तप में बस प्रेम-भक्ति होनी चाहिए,
चाहे वन में हो या भवन में।
क्या अंतर पड़ता है?
राहुल कल बड़ा होगा,
सौ-सौ सवाल पूछेगा,
और सौ-सौ बार मैं हारूंगी।
क्या जवाब मैं उसे दूंगी?
सोच-सोच मरती हूं,
आप जायें आर्य! तप करें,
आपको मुक्ति मिलेगी,
तो अपने-आप मैं भी मुक्त हो जाऊंगी।
आप आयें तो,
राहुल को सौंप मैं भी मुक्त हो जाऊंगी…
मैं भी मुक्त हो जाऊंगी…।
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