■दोहे : •डॉ. माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’.
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●छिपता नहीं चरित्र
-डॉ. माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’
[ कोरबा-छत्तीसगढ़ ]
● लाख छिपाने से कभी, छिपता नहीं चरित्र
वो कहते फिरता नहीं ,जो होता है मित्र
● गंगा में डुबकी लगा , लाख छिड़क लो इत्र
मन मैला हो जाय तो , होता नहीं पवित्र
● ज्ञान बढ़ाने की जगह ,बढ़ा रहे हैं कैश
समझ न पाए आजतक , अकल बड़ी या भैंस
● मन बहलाने के लिए ,करते हैं संवाद
जब कोई मिलता नहीं ,तब करते हैं याद
● जाल बिछाकर बज़्म में , बैठा है सैयाद
शायद कोई भूल से ,बुलबुल आए शाद
● उनके आगे वक़्त क्यों ,करते हो बर्बाद
रूप रंग को देखकर ,जो देते हैं दाद
● देखा-देखी लिख रहे ,बदल न पाए ढंग
‘नवरंग’ तो न बन सके , लोग हुए बदरंग
शा’द – आनंदित ,मौज में ।
●कवि संपर्क-
●79748 50694
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