■कविता आसपास : •गोविंद पाल.
●पैदल ही चल पड़े
-गोविंद पाल
[ भिलाई-छत्तीसगढ़.]
परिवार की जिम्मेदारी के जज्बे
पसीने बहाने की हिम्मत
और मेहनत की आत्मविश्वास के साथ
गांव के झोपड़ से निकल कर
हजारों मील दूर
भूख से लड़ने गये थे शहर
पर विश्व के प्रतिस्पर्धियों में
चीन के सुपर पावर बनने की
भूख के आगे
विवश है गांव से शहर गए
करोड़ों मजदूरों की भूख,
कोरोना काल की त्रासदियों में
कैसे भूल सकता हूं
उस त्रासदी को
उस अमानवीय दास्ताँ को
जब एक गरीब मजदूर मां-बाप
भूख और मौत के तांडवों के बीच
दिन भर हाड़ – मास गलाने वाली
थकान के बाद
शाम को लौटकर जब
ताले जड़े उनकी किराये के
खोली के सामने
बिखरे हुए सामानों के बीच
डरी सहमी रोती बिलखती
उनकी तीन साल की
बच्ची को देखते हैं
तब वह गरीब मजदूर मजबूर मां-बाप
एक ही झटके में देख लेते हैं
इस संवेदनहीन शहर के तस्वीर को,
इसके बाद वे इस शहर के चेहरे पर
एक जोरदार तमाचा जड़ते हुए
छलछलाती हुई आंखों से
बिखरे हुए सामानों को समेटते हुए
मन ही मन प्रतिज्ञा करते हैं
दुबारा कभी लौटकर नहीं आना
इस निर्दयी निष्ठूर बिखरे हुए शहर में,
फिर सामानों की गठरी लादते हुए
बच्ची को गोद में उठाये
पुनःहिम्मत और
आत्मविश्वास के साथ
लक्ड डाऊन के बावजूद
हजारों मील दूर पैदल ही चल पड़ते हैं
अपने गांव की ओर
जहां भूख जरुर है
पर आज भी
इंसानियत बरकरार है।
●नोट :【 पहेली बार कोरोना महामारी से जब लोग हलाकान थे मजदूरी करने गये हजारों गांव के लोग शहर में जो किराये पर खोली में रहते थे वहां से उन्हें बेदखल खोली के मालिक जबरन उनसे खोली खाली करवा रहा था। उनकी रोजगार भी खत्म हो रहे थे । गाड़ी घोड़ा ट्रेन भी सीमित चल रहा था। उस समय अखबार में महाराष्ट्र की एक घटना पढ़कर मन बहुत विचलित हो उठा था| उस घटना से मन बहुत व्यथित था। उस वक्त उसे शब्दों में ढालने का प्रयास किया था।】
●●●
●कवि संपर्क-
●75871 68903
●●● ●●● ●●●