■विश्व सायकिल दिवस पर विशेष लघुकथा : •महेश राजा
●छोटी सी आशा
-महेश राजा
[ महासमुंद-छत्तीसगढ़ ]
सायकिल को घर के अहाते में खड़ा कर उसने दोनों हाथ उठाकर आलस भगायी।
आज के अखबार बांटने का काम समाप्त हो गया था।अंतिम पेपर पाठक जी के घर में चौकीदार के हाथ में व्यवस्थित ढ़ंग से देकर उसने राहत की साँस ली थी।पाठक जी अनुशासन प्रिय थे।समाचार पत्र मुडा न हो।कोई पन्ना फटा न हो,इस बात का खास ध्यान रखना होता था।नहीं तो वे शिकायत कर देते।उससे पहले की गली वाले गोयल जी का कुत्ता उसे देखकर खूब भोंकता।साँस अटक जाती।
भीतर पहुंँचा, तो हमेंशा की तरह माँ ने हाथ कपड़े से पोंँछते हुए पूछा,-“आ गया बेटा।हाथ मुँह धो ले।चाय नाश्ता तैयार है।”
उसने भीतर की तरफ देखा,दीदी रसोई में थी।उसे देख कर फीकी हँसी हँस कर वह कुंए की तरफ चली गयी।
यह रोज का काम था।सुबह जल्दी उठकर समाचार पत्र बाँटता फिर चाय-नाश्ता कर कालेज जाता।फिर शाम को ट्यूशन लेता।
बाबूजी की अचानक मौत के बाद सबकुछ बदल गया।माँ बेचारी टूट गयी।दीदी एक स्कूल में पढ़ाती थी।पर शहर के हालात बहुत बिगड़ गये तो दीदी का बाहर निकलना बंद हो गया।तबसे वह दिन-रात एक कर कुछ पैसे कमाता और घर चलाता।दीदी की उम्र हो गयी थी।उसके विवाह की चिंता थी।पर,कैसे? यक्ष प्रश्न था।
आज एक प्राईवेट आफिस में ईंटरव्यू था।तो कालेज से आधा दिन छुट्टी लेकर वह ईंटरव्यू देने जाने वाला था।माँ की आँखों में हमेंशा की तरह चमक थी कि यह नौकरी उसे जरूर मिलेगी।हर बार क ई कारणों से उसे नहीं मिल पाती।कुछ दिन मायूसी से बीतते।फिर नयी आशा,नया उत्साह।
पुराने पड़े जूतों में उसने ब्रश फेरा फाईल लेकर जा ही रहा था कि माँ दहीं और शक्कर लेकर आयी।माँ के पैर पड़ कर आशीर्वाद लिया।नयी उमंग से चल पडा ।माँ के पीछे खड़ी दीदी ने हाथ हिलाया।
उसने सायकिल निकाली और चल पड़ा मंझिल की तरफ।कानों में तकलीफ़ के दिनों के इकलौते मित्र किशोर की आवाज सुनायी दी।वह अक्सर कहता-“बच्चा,सब ठीक हो जायेगा।उपर वाले पर भरोसा रखो।
इस बात ने उसका हौसला बढ़ायख।उसके पैर सायकिल के पैड़ल पर चलने लगे।
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