रचना आसपास : •दुर्गा प्रसाद पारकर.
●टोपी
-दुर्गा प्रसाद पारकर
[ भिलाई-छत्तीसगढ़ ]
मोर नाम टोपी हे
मँय खादी के बनथँव
मोर असली रंग सादा हे
इही सब ले जादा हे
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ह
चरखा म सूत कात के
मोला सिरजाय हे |
मँय बहुत किस्मत वाले अँव
मोला भारत महतारी के
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मन
पहिरत रिहिन हे
मोला पहिर के
भारत महतारी ल
गुलामी के जंजीर ले छोड़ाये बर
अपन परान ल
घलो देवत रिहिन हे |
आजादी मिले के बाद
धीरे धीरे
अउ कतनो रंग के टोपी बन गे
जे ठन पार्टी
ते रंग के टोपी निकल गे |
अब तो टोपी ल
कोनो भी ह पहिरे बर धर ले हे
जउन टोपी के मरम ल
नइ जानय
वहू मन नेता बने बर धर ले हे |
अब तो टोपी उपर
पार्टी मन के नाम
लिखाय बर धर ले हे
काला बताबे
अब तो
एक दूसर ल
टोपी पहिराये बर घलो धर ले हे |
कतनो मन
साल म एक दू दिन
तिहार बार म पहिरथे
काम निकलथे
ताहन दुख बिसराथे
तभे तो
मोला मुड़सरिया म खुसेर देथे |
आजादी के पहिली
मँय सोचे रेहेंव
कि
एक देस
एक रंग के टोपी होही कहिके
फेर
मँय नइ जानत रेहेंव
टोपी ह देखाय भर बर
बन के रहि जहि कहिके |
अवइया पीढ़ी तो
टोपी के त्याग अउ बलिदान ल
जानबे नइ करही
त कहाँ ले
सत्य, अहिन्सा अउ परमोधर्म के
पाठ ल पढ़बे करही |
टोपी बिनती करथे
देश के खातिर
कुर्सी कोनो भी पार्टी के रहय
टोपी के रंग भले
अलग अलग रहय
फेर
देश हित बर
सब एके संग रहय |
कुर्सी के चक्कर म
आज
सब मोला भुलावत जात हे
मोर गुन, धरम ह घलो
इँकर लड़ई झगरा के जाँता म
दिन रात पिसावत जात |
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