रचना आसपास : •पूनम पाठक बदायूं.
●आलोचना का विकास
-पूनम पाठक बदायूं.
[ इस्लामनगर,बदायूं,उत्तरप्रदेश ]
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने की शुरुआत
आलोचना की हुई है बड़ी बात
देखा तब वह हो गई आलोचना
ध्यान से देखा हुई समालोचना
सैद्धांतिक निर्णयात्मक व्याख्यात्मक
मार्क्सवादी ऐतिहासिक मनोवैज्ञानिक
गुण दोषों की जब करें विवेचना
पाठक को देती है सुखद भावना
आलोचक रखें अच्छी विचारधारा
साहित्य की होती अच्छी साधना
शास्त्रीय आलोचना शास्त्रीय लक्षण
आलोचना नहीं होती विज्ञान सिर्फ
द्विवेदी युग में पद्धतियां विकसित
छायावाद में आये रामचंद्र शुक्ल
आलोचना का भी होता भोजन
निष्पक्षता प्रेरणा दृष्टि ज्ञान विस्तृत
आलोचना पीती भी है स्वच्छ जल
प्रतिभा निर्णय क्षमता अभिव्यक्ति शब्द
आलोचना करती नहीं कभी बुराई
उसने पाई हमेशा अच्छाई सह बुराई
विद्वानों ने आलोचना में खुशी पाई
समालोचना ने प्रतिष्ठा है दिलाई
शीर्षक उद्देश्य भाषा चाहे शब्द
शैली अलंकार कैसे किया है चयन
आलोचना का विकास जरूरी है
जो रूठे इससे उसकी मजबूरी है
कोई हो रचना चाहे या पुस्तक
मिले आलोचना तब जाती है खिल
आलोचक एक विद्वान कहलाता है
जब वह सहृदय गुण दोष बताता है
तुलसीदास ने भी बहुत समझाया है
आलोचना दूर निंदा महत्व बताया है
आधुनिक कविता नहीं है अछूती
समीक्षा इसको भी जाकर छूती
धन्य होते हैं वे सभी ही आलोचक
रचना या पुस्तक कर देते हैं रोचक
हम सभी आलोचना का मान करें
खट्टा मीठा सभी जरूरी यह ध्यान करें
[ ●देश भर के रचनाकारों की रचनात्मक लेखन से ‘छत्तीसगढ़ आसपास’, 10 माह में 2,50,000+ वीवर्स की ओर अग्रसर है. ●’छत्तीसगढ़ आसपास’ संचालक मंडल रचनाकारों के प्रति कृतज्ञ है, जिनके सहयोग से हम दो लाख पचास हजार वीवर्स को पार कर रहे हैं. ●पूनम जी की ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ में ये दूसरी रचना है, कैसी लगी, अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएं, तो ख़ुशी होगी. -संपादक.]■