■लघुकथा : •विक्रम ‘अपना’.
●मुनिया का जन्मदिन
-विक्रम ‘अपना’
[ नन्दिनी, अहिवारा-छत्तीसगढ़ ]
आज मुनिया का जन्मदिन था।
उसने पिताजी को न जाने कितनी बार यह याद दिलाया था कि उसे सुनहरे बालों वाली गुड़िया चाहिये।
काफी अरसे के बाद आज ही लॉकडाउन खुला था।
मुनिया के पिताजी, ठेले के चक्कों पर तेल डालते हुए फीकी मुस्कान से बोले……
हाँ बेटा हाँ!! मैं आज जरूर तुम्हारे लिए, सुनहरे बालों वाली बहुत ही खूबसूरत गुड़िया ला दूंगा। आखिर मेरी प्यारी लाडो का जन्मदिन जो है, कहकर वे मूंगफली का ठेला लेकर निकल पड़े।
रास्ते में एक बड़ी सी दुकान में वैसी ही गुड़िया कांच की दीवार के पीछे दिखाई पड़ी।
मुनिया के पिता ने सर पर साफ़ा लपेटा और दुकान के कांच के दरवाजे को खोलने की कोशिश करने लगे।
अंदर सी सी टी वी कैमरे से सब कुछ झांकता दुकानदार, झल्लाकर कर्कश सी आवाज में बोला……
क्या चाहिए?
वहीं से कहो!!
शायद उसने अपने ग्राहक को भगवान का दर्जा न देकर खुद को ही भगवान समझ लिया था।
वह गुड़िया!!
उंगली के इशारे से बताते हुए बेटी के गरीब बाप ने कहा।
पांच सौ सत्तर रुपये!! दुकानदार ने उसकी ओर बिन देखे ही कहा और दुकान पर लगे फ्लेट टीवी पर चलते गाने का वॉल्यूम अपने सपाट चेहरे के साथ फुल कर दिया।
यह सुनकर, कुछ देर बाद वह मूंगफली वाला सड़क पर था।
वह दिनभर शहर की अनजानी गलियों में जर्जर ठेले को ढोता…..
ले लो!!
मीठी मूंगफली ले लो!!
कहता रहा पर कोविड बीमारी के डर से कोई बाहर तक नहीं निकला।
तभी एक मनचला जोड़ा वहां से गुजर रहा था।
उन्होंने दस रुपए की मूंगफली खरीदी। पहली मूंगफली खाते ही वह फूलों के चित्र वाला हाफ शर्ट पहना मजनू चिल्ला उठा……
आक्क थू!!
साला लॉकडाउन की सड़ी हुई मूंगफली हमें बेचता है!!
हमें क्या पागल दीवाना समझ रक्खा है??
कहकर उसने ठोंगे में भरी फल्ली को जमीन पर पटक दिया। और अपने पैसे फल्ली वाले के हाथों से झटक लिए।
और फिर बेफ्रिकी से वह जोड़ा, रोमांटिक गीत गाता हुआ आगे बढ़ गया।
गली के कुत्ते भीड़ लगाकर, नए विचित्र वेशभूषा वाले उस ठेलेवाले पर बेदम भौंकने लगे।
उस ठेले वाले ने सीने पर हाथ रखकर, आसमान की ओर देखा।
केवल काले घने बादलों के अलावा, उसे कुछ भी दिखाई न पड़ा।
थोड़ी ही देर में चारों ओर झमाझम बारिश शुरू हो गई।
इसके साथ ही एक मजबूर बाप के अन्तःस्थल स्थित घनीभूत भावनाओं का बादल, फटकर रो पड़ा।
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