■विषय-विशेष पर रचना : •पूनम पाठक बदायूं.
●स्मृतियां शेष तुम्हारी
-पूनम पाठक बदायूं
[ इस्लामनगर,बदायूं-उत्तरप्रदेश ]
बस स्मृतियाँ रह गयीं शेष
तुम चले गए कौन से देश
उंगली पकड़ चलाया होगा
प्यार भी खूब दिखाया होगा
कुछ भी याद नहीं आता है
स्मृतियाँ जिनमें न छाया है
मां बतलाती गई वे बातें
जो पसंद थीं तुमको बातें
समाज भी परिवार समझा
भरी थी ऐसी सामाजिकता
कभी ये स्मृतियां चुभती हैं
जब हवा सी वे दिखती हैं
मुझे विश्वास है मेरे साथ हो
दूर हो चाहे न मेरे पास हो
मां तुम्हारी बात बताती थी
बताना क्या पाठ पढ़ाती थी
चांद में देखूं तारों में देखूँ
फिर भी सुकूँ नहीं पाती हूं
दीवारें हों कितनी ऊंची
नींव तुम्ही को पाती हूं
परहित सदा तुमने सोचा
पर वक्त ने दे दिया धोखा
वे सब स्मृतियां कैसी हैं
जो घटनाएं नहीं देखी मैंने
उदारता दयालुता खूब दिखाई
माँ ने कुछ ऐसी जीवनी बताई
सूरज चमक कर छिप जाता है
और सवेरे फिर से आ जाता है
पर तुम चले गए हो देश ऐसे
जहां से कोई न वापस आता है
कृष्णा का संदेश यह बताता है
अजर अमर तुम्हारी आत्मा है
झाड़ू सा बना रहे परिवार
वह उसमें शांति की बयार
कितने सुंदर थे विचार तुम्हारे
दुख कि रह न सके साथ हमारे
पद चिन्हों पर चलना चाहा
पर पथ कठिन है तुम्हारा
मिट्टी में ही मिलता जन्म है
मिट्टी से ही अंतिम मिलन है
कर्म ही पूजा कर्म ही ईश्वर
मिट्टी का सदा किया पूजन
अशर्फी से तुम्हें प्रेम ना हुआ
सेवा का जब से भाव हुआ
सुकर्म किया इतना था भाया
परहित में अर्जित धन लगाया
ढेरों स्मृतियां मेरे पास है
सभी स्मृतियां तो उदास हैं
स्मृतियों बन गयीं किताब हैं
मुझे अपने पिता पर नाज है
सूरज थे तुम घर आंगन के
पल -पल माँ के आंसू निकले
पर आज भी तुम रक्षक हो
आज भी मेरे शुभचिंतक हो
तुम देखते हो मुझे हर वक्त
मुझे लगते हो कहीं अदृश्य
जा मिले हो कहीं ईश्वर से
कृपा रखो विनती है तुमसे
पिता स्मृतियां शेष तुम्हारी
स्मृतियां भी तुम सी प्यारी
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