■रामनाथ साहू की दो लघुकथाएं.
●कुंती
निपूती है यह।
इस जनम तो क्या…।सात -सात जनमों तक इसके कुछ न होंगे ।
मेरे घर जैसे खान -पान में भी यह पूत – कुपूत..ईंट- ढेला कुछ भी नहीं बिया पाई,तब और क्या…।
सास पानी पी -पी कर कोसती ।
कैसे बताती वह…। उसके शरीर- कुण्ड में धधक रही यज्ञाग्नि में जब ,आहुतियाँ ही नही डाली जायेंगी, तब यज्ञ का फल कैसे मिलेगा।
चौथी बार – गाइनो मेडम की रिपोर्ट आयी है। वही का वही।
नियत समय पर उसका ओवम आ रहा है। और हमसफ़र के बिना ,कुछ दिनों की प्रतीक्षा के बाद शून्याकाश में फिर विलीन हो जा रहा है।
कुंती ने यम -इन्द्रादि देवों की उपासना कैसे की होगी ।वह, यह सोचने लगी थी।
●फिरकी
अनुपम आज अपनी बाइक बहुत ही मंथर गति से चलाते हुए आगे बढ़ रहा था।
कचहरी से अपने काम के सलट जाने के आनंद का वह आस्वादन कर रहा था ।
जैसे ही वह चौराहे पर पहुंचा ,एक व्यक्ति ने उसे लिफ्ट के लिए हाथ से इशारा किया । वह खाली रहने पर दूसरे दिन भी मना नहीं करता है तब तो आज इंकार करने का प्रश्न ही नहीं उठता था।
उसने उसे अपनी बाइक की पिछली सीट पर बड़े ही आरामदायक ढंग से बिठाया । थोड़ी दूर आगे जाने पर, रास्ते में एक फिरकी वाला ; खूब सारे रंगीन फिरकियों को अपनी लट्ठ में खोंस कर, कुछ गाते हुए उन्हें बेच रहा था ।
“भाई साहब जरा रुकेंगे …?”उस लिफ्ट लेने वाले आदमी ने बड़े ही अदब से कहा ।
“हां ,क्यों नहीं ।”
“मैं जरा यह फिरकी ले लूं ।” उसने कहा ।अनुपम को भला इससे क्या आपत्ति होती । वह भी उतर कर उसके साथ फिरकियों को देखने लगा ।
उस आदमी ने दो फिरकी लिए और फिरकीवाले को दाम चुकता कर अनुपम से वापस चलने के लिए अनुरोध किया।
लगभग दस मिनट चलने के बाद उस आदमी ने फिर अनुरोध के स्वर में कहा- बस मुझे यही पर उतार दें ।
इस पर अनुपम ने कहा- चलिए ,आज मैं आपको आपके घर तक छोड़ कर आता हूँ।
संकोचवश उस आदमी ने कुछ नहीं कहा ।
“चलिए ,मैं मजाक नहीं कर रहा हूं ।”
“तब चलिए, फिर आपको घर से चाय पीकर आनी होगी ।”
इस पर अनुपम ने कहा- चलिए, यही सही।
तीन चार मिनट के अंदर में ही एक दो पतली गलियों से गुजरने के बाद उसका घर आ गया ।
अब अनुपम उम्मीद करने लगा कि… दो बच्चे घर से निकलेंगे और झपट कर इन फिरकियों को इनसे ले लेंगे ।
अनुपम उन बच्चों को देखने के लिए एक प्रकार से व्यग्र भी हो रहा था। शादी के इतने दिनों बाद भी उसका अपना कोई बच्चा नहीं था। वह कभी कभी ऐसे खेल -खिलौनों को देखकर अनमना भी हो जाता था । इनको घर तक पहुँचाने के पीछे एक प्रकार से इन फिरकी वाले बच्चों को देखने का भी भाव था।
कॉल बेल बजी। दरवाजा खुला। अंदर से इनके ही हमउम्र एक महिला निकली और उसने चहकते हुए उन फिरकियों को इनके हाथों से ले लिया ।
ड्राइंग रूम में वे जाकर बैठ भी गए । अब तो अनुपम से रहा नहीं गया। उसने उस आदमी से आखिर पूछ ही लिया- साब… बच्चे !
तब उस आदमी ने अपनी गृहणी की ओर इशारा करते हुए कहा – यह तो यह है और दूसरा मैं खुद हूँ।
बातों में ही पता चला कि उनका अपना कोई बच्चा नहीं है और डॉक्टर ने उनको साफ सुना भी दिया है कि वह मां नहीं बन सकती।
चाय कैसी लगी भाई साहब । हमारे बच्चे हम ही हैं -उस महिला ने हाथ जोड़ते हुए कहा।
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