बस्तर बस्तर यह अरण्य तो दण्ड का है महाराज- लोक बाबू
उपन्यास ‘बस्तर बस्तर यह अरण्य तो दण्ड का है महाराज’ : यह उपन्यास बस्तर की जिंदगी और बीते हुए की बड़ी मार्मिक गाथा है. बस्तर सभी को आकर्षित करता है, क्योंकि वहाँ एक बड़ी लड़ाई लड़ी गई. बस्तर की अप्राइज़िंग आदिवासियों की लंबी लड़ाई, जिसके अनेक परिदृश्य हैं. वहाँ आदिवासी संस्कृति मरी नहीं है, वह नुमाइश की चीज़ भले बना दी गई हो,उसके उत्कर्ष को भले चोटें पहुंचाई गई हों.
छत्तीसगढ़ के ख्यातिलब्ध लेखक लोकबाबू बस्तर की गाथा को सबको बता रहे हैं, जो इनसे वाकिफ़ नहीं हैं.
‘राजपाल एंड संस’ से प्रकाशित ‘बस्तर बस्तर-यह अरण्य तो दण्ड का है महाराज’ उपन्यास की भूमिका प्रसिद्ध कथाकार और संपादक ‘पहल’ के ज्ञान रंजन ने लिखा है.
लोकबाबू की अब तक दो कहानी संग्रह ‘टीले पर चांद’ और ‘बोधिसत्व भी नहीं आए’ तथा दो उपन्यास ‘अब लों नसानी’ और ‘डींग’ प्रकाशित हो चुकी है.
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