■दुर्गा प्रसाद पारकर की दो छत्तीसगढ़ी कविताएं.
1 ●शहीद युगांतर.
घठौंदा के
माँथ ह आज ऊँच हे
काबर कि
ओकर गाँव के दुलरूवा बेटा
युगान्तर ह बार्डर म शहीद होय हे
इही घठौंदा म
नहा खोर के बड़े होय रिहिसे
आज अपन मातृभूमि
के रक्षा खातिर
भारत माता के गोदी म
सदा दिन बर सोय हे |
युगान्तर के
धर्म पत्नी बिसाखा ह
अपन धरम निभावत हे ,
श्रद्धांजलि के रूप म
बिसाखा ह घठौंदा म
अपन चूरी ल चघावत हे,
बिसाखा के दुख ल देख के
घठौंदा म माढ़े
पखरा के आँसू ह
नदिया के धार कस बोहावत हे |
बोहावत माँघ के सेंदूर ह
शहीद युगान्तर के
लहू के सुरता देवावत हे
शहीद के सपना ल
पूरा करे खातिर
बिसाखा ह
सैनिक बने बर
माटी के तिलक लगावत हे |
2 ●जिनगी के जोत.
डुमन अउ कविता ह
अपन बेटा ल
जिनगी के जोत कस
जलाये रिहिसे ,
कतनो झकोरा अइस
फेर
कइसनो करके बेटा ल
बचाये रिहिसे |
इही जोत के अँजोर म
महतारी बाप ह
हाँसत कुलकत जींयत रथे ,
फेर
विधाता के रचना ल
कोन जानथे
एक दिन अकस्मात
ओकर
जिनगी के जोत ह बूझा जथे |
डुमन अउ कविता ह
गरीब लइका ल
पढ़ा लिखा के नवा जोत जलाथे ,
सपना तो
अपन बेटा के पूरा करत रिहिसे
फेर
ए मेर तो सिर्फ
ओकर पात्र बदल जथे |
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