■पर्यटन : अमरकंटक : •लेखक अंशुमन राय ‘राजा’.
●नर्मदा के साथ-साथ.
-अंशुमन राय ‘राजा’.
[ इलाहाबाद, उत्तरप्रदेश ]
नर्मदा जिसे ‘रेवा’ के नाम से भी जाना जाता है. विश्व की एकमात्र ऐसी नदी है जिसकी परिक्रमा की जाती है और पुराणों के अनुसार गंगा नदी में स्नान करने से जो फल प्राप्त होता है वह नर्मदा के दर्शन मात्र से ही प्राप्त हो जाता है. इसी नर्मदा नदी का उद्मम स्थल है ‘अमरकंटक’. इलाहाबाद अब प्रयागराज से भिलाई जाते वक्त हमें अमरकंटक के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ और अमरकंटक एवं उसके आसपास की प्राकृतिक सुंदरता देखकर हम प्रफुल्लित एवं मंत्र मुग्ध हो गए.
‘मैकाल’ की पहाड़ियों में बसा ‘अमरकंटक’ मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले में आता है. समुद्र तल से 1065 मीटर ऊंचे इस स्थान पर ही मध्य भारत के विंध्य और सतपुड़ा की पहाड़ियों का मेल होता है. घने जंगलों के बीच ‘अमरकंटक’ में नर्मदा के साथ-साथ सोन नदी का भी उद्मम स्थल है. मध्यप्रदेश के अमरकंटक से नर्मदा पश्चिम में बहते हुए 1312 किलोमीटर का सफर तय करने के पश्चात गुजरात के भरूच जिले के समीप अरब सागर में जा मिलती है.
अमरकंटक में ही बसा ‘नर्मदा कुंड’ से नर्मदा उद्मम हो रही है. आश्चर्य की बात यह है कि जो नर्मदा अपने अथाह जलराशि एवं वेग के लिए जानी जाती है, उसी नदी की चौड़ाई अमरकंटक में 2-3 मीटर से अधिक नहीं है. हम अमरकंटक में नर्मदा के दर्शन करके अपने सफर पर आगे तो बढ़ गये लेकिन उसकी सुंदरता एवं रहस्यमता कहीं में घर कर गई और यही वजह थी कि हमने यह निर्णय लिया कि जितना हो सके लौटते वक्त हम नर्मदा के साथ-साथ सफ़र करेंगे और उसकी सौन्दर्यता, चपलता, रहस्यमता को आत्मसात कर लेंगे.
अमरकंटक में उस नदी का जो शांत एवं सौम्य रूप देखने को मिला,वह रूप उसके पश्चिम की ओर बहते हुए सफर पर कुछ अलग ही दिखा. जंगल के मध्य से बहती हुई नर्मदा का सौन्दर्य ही कुछ और है. ‘मंडला’ जिले से बहते हुए कुछ औऱ, बरगी बांध में कुछ और, जहां नर्मदा एक पहाड़ी नदी से एक अथाह जलराशि वाली नदी में परिवर्तित हो रही है. सबसे आश्चर्यचकित कर देने वाला रूप देखने को मिला,हमें जबलपुर के निकट बसा ‘भेड़ाघाट’ में. वहां पर नर्मदा की चंचलता, चपलता,वेग देखकर सहज ही विश्वास करना मुश्किल होता है कि क्या यह वही नदी है जो अमरकंटक में कितनी सरल,सौम्य, लघु रूप में बह रही है. यह सत्य भी है कि हम अपने जन्मस्थल पर प्रायः बड़े शांत,सौम्य, सरल एवं बिना लाग-लपेट के रहते हैं. बाकी गुण और स्वभाव धीरे-धीरे एवं जैसे-जैसे परिपक्व होते जाते हैं, वैसे-वैसे सीखते रहते हैं. शायद यही तथ्य नदियों के लिए उतना ही प्रासंगिक एवं उपयुक्त है.
फिलहाल हमारा सफर नर्मदा के साथ-साथ मात्र भेडाघाट तक ही सीमित रहा, लेकिन नर्मदा के प्रति हमारा प्रेम,सम्मान को समेटते हुए इस इच्छा के साथ हम प्रयागराज की ओर बढ़ गये कि इस पवित्र नदी जो कि मध्यप्रदेश की ही नहीं अपितु हमारे देश की भी जीवन रेखा है, ऐसी नदी की एक बार परिक्रमा जरूर करेंगे और इसके साथ-साथ सागर तक जरूर जाना चाहेंगे और उसका वह विलक्षण रूप को जरूर देखना चाहेंगे. है नर्मदा! आपसे शीघ्र ही भेंट होगी.●
【 साभार : दुस्साहस 】
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