■किसी के आँसू कैसे पौंछे ? – विजय कुमार तिवारी.
कभी-कभी मन नहीं भरता,व्यथा शान्त नहीं होती,व्यक्त नहीं हो पाता भीतर का भरा सब कुछ,एक कविता लिख देने से,एक कहानी सुना देने से। अक्सर उमड़ते-घुमड़ते रहते हैं मन के जज्बात,बादलों का बनना,रंग बदलना और शोर मचाना,कभी मौन,शान्ति तो कभी अंधड़-तूफान,ऐसा ही है हम सबका जीवन। विश्वास पूर्वक खोजो तो दुनिया निराश करती है,भरोसा करो तो धोखा मिलता है,प्रेम तो कहीं है ही नहीं जिसके बिना सबकी दुनिया वीरान सी है। स्वप्न की अनुभूतियाँ जागते ही बेचैन करती हैं,सत्य समझ में नहीं आता। ईश्वर सब कुछ दिखाता रहता है,कभी यथार्थ में,कभी स्वप्न में और कभी कल्पना के संसार में। कठिन होता है पहचानना, स्वीकार करना और टिके रहना। सबसे मुश्किल है टूटे विश्वास के दौर में खड़ा होना।
ऐसा ही कुछ उसके रूदन में था। बहुत मुश्किल हो रहा था उसे समझाना। उसका बेजार होकर रोना व्यथित कर रहा था। उस क्षण के अनुभव को कोई समझ नहीं सकता। कोई रिश्ता नहीं है हमारा-उसका। शायद उसे विश्वास है,मैं मदद कर सकता हूँ उसके उलझे धागों को सुलझाने में। कैसे समझाऊँ कि हर किसी को अपनी उलझनों से स्वयं निकलना पड़ता है,स्वयं उठ खड़ा होना होता है,अपने ही पल्लू से आँसू पोंछने पड़ते है और अपने ही भीतर कुछ निश्चय करना होता है। कल मेरे लिए मुश्किलों भरा दिन था,सालों बाद स्वयं को असहाय महसूस कर रहा था। उसने बताया,वह अकेली नहीं है इस हालात में,अनगिनत लड़कियाँ,महिलाएं हैं। उसे लगता है सम्पूर्ण नारी जाति ही शिकार है। उसने बेहतरीन अनुभव साझा किया,केला और चाकू के खेल में कटना केले को ही है। चमत्कृत होता हुआ मैंने उसे गौर से देखा, स्मित मुस्कान उभर आयी उसके चेहरे पर। अद्भुत सौन्दर्य नुमाया हुआ और संभावनाओं का द्वार खुलता सा दिखा। समझते देर नहीं लगी,उसके अनुभव ही उसे बाहर खींचकर बाहर निकाल लायेंगे। ऐसा मेरे साथ अनेकों बार हुआ है। मैं चिङ्गारी की तलाश करता रहता हूँ,राख के ढेर में। मैं मानता हूँ,ईश्वर मनुष्य में अपार संभावनायें भर कर भेजता है। जब तक वह भ्रमित रहता है,दुख में पड़ा हुआ प्रयासहीन बना रहता है,डूबा रहता है, तब तक मुश्किल होता है उस जर्जर हालात से बाहर निकलना। दुखद है कि हमारी बहुतायत आबादी ऐसे ही दुख भोग रही है। यह स्वाभाविक भी है क्योंकि दुख की घड़ी में ज्ञान का लोप हो जाता है,व्यक्ति सहानुभूति खोजने, चाहने लगता है। लोग प्रयास भी करना चाहते है,उद्यत और सक्रिय भी होते है परन्तु अपेक्षित सफलता नहीं मिलती। इसका बहुत छोटा सा कारण है। मान लीजिए,किसी को पेड़ पर चढ़ना है,उसे चढ़ने की कोशिश करनी होगी। कोशिश करने वाले के पक्ष में लोग खड़े होते हैं। मैं तो यह भी मानता हूँ कि सम्पूर्ण ईश्वरीय या प्राकृतिक शक्तियाँ उस व्यक्ति के साथ सक्रिय होने लगती हैं। विश्वास कीजिए,आपकी कोशिश की शुरुआत ही आपको सफलता दिलाती है। प्रयास करना हमारा प्रथम कर्तव्य होना चाहिए और प्रयास करते हुए दिखना भी चाहिए। हमारा प्रयास का भाव और कोई देखे या न देखे,ईश्वर अवश्य देखता है। देखता ही नहीं है बल्कि मनुष्य को प्रयासरत देखना चाहता है। उसकी प्रथम शर्त यही है कि उठो और प्रयास करो। चाहे किसी भी अवस्था में हो,अशक्त और लाचार हो,उठने की कोशिश करो। उठ नहीं सकते तो भी उठने की भावना करो। विश्वास करो,ईश्वर हमें-तुम्हें हर पल देखता रहता है। हमारा सब कुछ जानता है। उसका स्वाभाविक स्वभाव है कि हमारी मदद करे। बस हमारी चेतना देखना चाहता है,हमारी सक्रियता देखना चाहता है। हमारे भीतर के करुणा,प्रेम को देखना चाहता है। ईश्वर देखता है कि हमारे जीवन की प्राथमिकताएं क्या हैं?हमारे भीतर की गतिशील करने वाली ताकत क्या है?हमारी प्रतिबद्धता किसमें है?ये सारे तत्व हमारे भीतर पड़े हुए हैं,ये हमारे औजार हैं जो दिशा देते हैं,सहायता करते हैं और लक्ष्य तक पहुँचाते हैं।
मैंने उसे नारी की गरिमा बनाए रखने को कहा,नारी बने रहने को कहा और नारी-चरित्र निभाने को कहा। अक्सर हम जो हैं उससे इतर बनना और दिखना चाहते हैं,यही हमारी सबसे बड़ी त्रासदी है। शायद हर किसी के जीवन में भटकाव ऐसे ही शुरु होते हैं और विसंगतियाँ उभरने लगती हैं।
वह शान्त हो चुकी थी,उद्वेग के भाव ठहर गये और चिन्तन की मनःस्थिति बनने लगी। यही वह मार्ग है जिसे हर व्यक्ति को पकड़े रहना चाहिए। ईश्वर को साथ ले लो तो जीवन सहज और सुगम हो जाता है। जो घटित होता है उसका दायरा बाहर है। ज्योंही हम उससे उलझते हैं,वह भीतर घुस आता है और हमें उलझा देता है। यहीं हमें सावधान होना है। किसी ने धोखा दिया,हम दुखी होने लगते हैं। ऐसा नहीं करो। हो सके तो उस व्यक्ति की स्थिति-परिस्थिति को देखो,उसकी मदद करो। विश्वास करो,किसी को दुखी करने के पहले हर व्यक्ति स्वयं दुखी होता है। उसके साथ कुछ हुआ है कि उसने यह रास्ता चुना। सच पूछो तो वह क्षमा का पात्र है। हो सके तो उसे क्षमा कर दो। दूसरों को गिराने के लिए लोग पहले स्वयं गिरते है।
उसे मेरी बातें समझ में आने लगी,चेहरे का तनाव खत्म होने लगा और आँखों में चमक उभरने लगी। वहाँ अद्भुत सौन्दर्य निखर आया।
मैंने उससे बहुत कुछ कहा और उसका भी सुना। सारांश यही है कि स्वयं को पहचानो,अपनी सामर्थ्य को समझो और खुश रहने की कोशिश करो। आपका कोई भी दुख आपसे बड़ा नहीं है,आप पूरे मन से कोशिश नहीं करते। आप दूसरों को दोष देते हो और दूसरों से उम्मीदें रखते हो। आप दुखी हो तो आप दोषी हो और आपको ही निकलने का रास्ता खोजना होगा। आप सक्रिय होना शुरु करो,पूरी दुनिया और ईश्वर सब आपके साथ आ खड़े होंगे।
आज उसने फिर फोन किया। वह खुश है। उसने माना,आधी से अधिक समस्या तो उसके स्वयं में बदलाव से स्वतः हल हो गयी। उसने अपनी गलती मान ली। हम अपनी गलती नहीं मानते। उसे विश्वास हुआ है,सब सुधर जायेगा। मुझे पूर्ण विश्वास है,हमारा चिन्तन सही हो,सब ठीक हो जायेगा। उसके बहाने मेरा भी आत्मविश्वास जाग गया है,अब दूसरों की सहायता कर सकता हूँ। उसका विश्वास से भरा चेहरा दमक रहा है। वह मुस्करा रही है।
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