■पर्यावरण दिवस पर चिंतन : संजय मिश्रा [ शिवनाथ बचाओ आंदोलन के संयोजक एवं जनसुनवाई फाउंडेशन के छत्तीसगढ़ प्रमुख ]
♀ चिंतन
पर्यावरण जीवन का अभिन्न अंग है।बिना पर्यावरण सुरक्षा के हमारी सुरक्षा की कल्पना करना व्यर्थ है। सांसे देते हमारे आसपास के पेड़ पौधे हमेशा यही संदेश देते हैं कि हम उन्हें सँवारें सुरक्षित करें। कोरोना काल का वह दौर याद किया जाय जब आक्सीजन न मिलने की वजह से पर्याप्त मौतें हुई थीं तब पेड़ पौधों की अनिवार्यता कुछ समय के लिए मनःस्थिति पर अपना घर कर गई लेकिन जब वह दौर गुजर गया तब हम पेड़ पौधों को काटकर सड़क और मकान बनाने लगे। मानव की यही स्वार्थपरता जीवन पर भारी पड़ता है। इसलिए हम सबको हर हाल में कम से कम 5 पौधे लगाकर उनका संरक्षण करना नितांत आवश्यक है।
पर्यावरण दिवस मात्र दिखावा बन कर न रह जाय- हर वर्ष 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। राजनेता से लेकर बड़ी बड़ी सिलेब्रेटी व सामाजिक कार्यकर्ता तक पौधे रोपकर फोटो तो खींचा लेते हैं लेकिन उनका संरक्षण करना उन्हें समय समय पर पानी देने वाला कोई नजर नही आता महज एक कोरम पूरा करने तक ही सीमित हो जाना ही दिखता है। आक्सीजन के साथ साथ छांव और ग्लोबल वॉर्मिंग तक कि रक्षा पौधों के हाथ मे है और पौधों की सेवा मानव के हाथ। जब हम अपनी सुरक्षा चाहते हैं तब हमें भी पेड़ों की सुरक्षा करना जरूरी हो जाता है। पर्यावरण दिवस मात्र दिखावा न बनकर रह जाय इसके लिए हमें नैतिक जिम्मेदारी का पालन करते हुए पौधरोपण से लेकर उनकी सुरक्षा तक कि गारंटी हमारी होनी चाहिए अन्यथा यह फोटो शूट का कोई औचित्य नहीं है।
पर्यावरण में पारिस्थितिकीय तंत्र की व्यवस्था भी शामिल है। जंगलों की सुरक्षा व जंगल मे रह रहे जीवों की रक्षा करना भी पर्यावरण दृष्टिगत है। जब जंगली जीव अपनी सीमा में रहते हैं तब भी उन्हें हम चोट पहुंचाते हैं और जब वे अपनी सीमा से बाहर अर्थात जंगल से बाहर आते हैं तब भी हम उनको नष्ट करने में तुले रहते हैं,ऐसे में पर्यावरण की क्या सुरक्षा हो पायेगी। पेड़ पौधे,नदी,जंगल,और जीवों की रक्षा करना ही पर्यावरण सुरक्षा है। नदियां आज प्रदूषण की शिकार हो रही हैं,जंगल वन कटते जा रहे हैं पशु पक्षी विलुप्ति के कगार पर हैं जब यह सब चरम पर है तो पर्यावरण दिवस की क्या औपचारिकता सार्थक हो पाएगी। इसलिए अब सही मायने में हर व्यक्ति को अपने लिए खुद की जीवन रक्षा के लिए पेड़ पौधों को लगाकर उनकी सुरक्षा करना जरूरी है। नदियों का संवर्धन करना नितांत आवश्यक है,प्रदूषण न फैलाने का संकल्प लेना और उस पर अडिग रहना ही सही मायने में पर्यावरण दिवस की सार्थकता व व्यापकता सिद्ध करना है। युवाओं को इस अभियान में बढ़चढ़ कर संकल्पित होना चाहिए और अपने शहर गाँव दुर्ग भिलाई की धरती पर हरियाली लाने आगे आना चाहिए तभी सांसे मिलेंगी आक्सीजन रेट कम नही होगा तब कोरोना जैसे प्राकृतिक आपदा भी हमारा कुछ बिगाड़ नही सकेगा।
सरकारी आंकड़ों से उठकर सच्चाई पर आना होगा- यदि देखा जाय तो हर साल सरकारें करोड़ों पौधरोपड़ का दावा करती हैं। कागजो पर सैकड़ों एकड़ में पौधे लगाकर उनकी सुरक्षा की बात कही जाती है,लेकिन सच्चाई इससे इतर बयां करती हुई झूठे दावों की पोल खोलती है। यदि हर साल करोड़ों पौधरोपड़ होते हैं तो आक्सीजन रेट घट कैसे रहा है और नए पल्लव नजर क्यों नही आते। करोड़ों की संख्या में रोपे गए पौधे तो विकराल घने हरियाली युक्त वनों को दर्शाते,नदियों के कटाव रुकते और लोगों को छांव मिलती,इसलिए सरकारी आंकड़ों में न फंसकर खुद को आगे आना होगा तभी पर्यावरण दिवस की सच्ची उपासना हो पाएगी। समाजसेवी संजय मिश्रा ने पर्यावरण दिवस पर भी दुर्ग भिलाईयन्स से नौजवानों से यह अपील की है कि अधिक से अधिक लोग खुद होकर पौधरोपण करें और उनकी सुरक्षा हेतु आगे आएं यही आज व भविष्य की दरकार है।
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