






तीन लघुकथा : रश्मि अमितेष पुरोहित

चाँदनी
संयुक्त मारवाड़ी परिवार में आज अनोखा आनंदमय उत्सव सा विद्यमान है ताऊजी की सबसे लाडली पूर्णिमा को देखने उन्हीं के बचपन की सहेली का परिवार आ चुका है। ताऊ जी के चेहरे पर रिश्ते को लेकर असीम सुख व शांति विराजमान है।
घर की महिलाएं इतनी दूर से आए रिश्ते से बहुत ज्यादा खुश नहीं थी। माना कि ननिहाल उसी मोहल्ले का है ,पर उनकी लाडली इतनी दूर जाए और ऊपर से सुना था लड़के की बहन बहुत होशियार और तेज है। गृह मुखिया के साथ दोनों छोटे भाई भी चुपचाप व्यवस्था देख रहे थे ।
अद्भुत वातावरण है पूर्णिमा अपने नाम के अनुरूप शांत सौम्य असीम सौंदर्य की मल्लिका है तो लड़का भी अपने नाम के अनुरूप शांत सुशील और चरित्रवान है। लड़का लड़की का देखना दिखना औपचारिकता मात्र है । गुण वर्गों का भी अद्धभुत मिलन पहले ही हो चुका है । लड़के की बहन को लेकर हल्की सी घबराहट है, पर पूर्णिमा के चाँद से उजले मुखड़े से कौन प्रभावित नही हो सकता, ये सोच कर ताऊजी की घबराहट जाती रही। लड़के लड़की के बीच औपचारिक मुलाकात भी नई- नवेली भाभियों ने गुपचुप घर दिखाने के बहाने तय कर ही ली थी। सभी और चंद्रमा की शीतल बयार बहने ही लगी थी। एक हाँ के साथ सगाई का कार्यक्रम भी दोनों और से मूक सहमति पाता नजर आने ही वाला था।
कि अचानक बातों ही बातों में लड़के की बहन ने कन्या पूर्णिमा को एक कमरे में ले जाकर कमरा अंदर से बंद कर लिया। चाँद जैसे काले बादलों की ओट में हो लिया हो वैसे ही पूर्णिमा कुछ सहम सी गई
तभी उसकी होने वाली ननद ने पूछा :-“आपको मेरा भाई पसंद है” उसने बहुत धीमी आवाज में हां कहाँ ही था ।
कि ननद ने दूसरा सवाल दाग दिया :-“आप ये बिना किसी दबाव के कह रही है आप किसी और को तो पसन्द नही करती है ”
नही नही पूर्णिमा ने मजबूत स्वर में कहाँ
आप हम सब को पसंद है क्या हम सब भी आपको पसंद है
“हा” विस्मित भाव से उसने कहाँ
“इतनी दूर जाने में आपको कोई एतराज तो नही है ”
नही पर आप ये सब क्यों पूछ रही है पूर्णिमा ने कुछ संकोच के साथ पूछ ही लिया ।
क्योंकि मैंने देखा आपका संयुक्त परिवार बहुत खूबसूरत है परंतु हमारे एकल परिवार में आप अपनी पसंद से मुस्कुराते हुए आये तो हमारी खुशियां दुगनी हो जाएगी ।
आप निश्चिंत रहे आप मना करेगी तो पूरा दोष में अपने ऊपर ले लुंगी ।
पूर्णिमा का चाँद पूरे शबाब में था अगर मेरी ननद ऐसी तेज है तो मुझे मंजूर है ताऊजी
दरवाजा खुलते ही पूर्णिमा की चाँदनी दोनों परिवारो में फैल
गई ।
हौसला
प्रेम की लकीरे इतनी रंग बिरंगी सुनहरी दिखाई देने लगी की बिन्नी और रमेश उसमे खोते ही चले गए थे। परंतु जब दाम्पत्य की गहरे रंगों से भरी दीवारों से उनका सामना हुआ तो रंग बिरंगी इंद्रधनुष की घटाएं वैसे ही लुप्त होती चली गई जैसे सूरज की तपन अपने ही इंद्रधनुषी रंगों को उड़ा देती है।
बहुत सी कोशिशों के बाद भी आज उनकी आखरी पेशी का दिन था । आज कागज के पन्नों पर उनका अलगाव होना था।
साथ ही 2 वर्षीय मासूम का भी फैसला होना था । दंभ अहंकार अविश्वास की तेज रोशनी में रमेश को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था ।उसने हस्ताक्षर किए ही थे कि कमरे में सन्नाटा छा गया एक गौरैया अपने बच्चे के साथ उड़ते हुए पंखे से टकरा गई ।
सब ने दया दृष्टि उस पर डाली और राहत की सांस ली कि वह जिंदा है पर वह निर्जीव लटकी गोरैया सभी की दया की पात्र तो थी पर उसे ही हौसला रख कर अपने बच्चे के साथ वापस उड़ने की कोशिश करना था । बिन्नी ने हस्ताक्षर किए और बच्चें के साथ तेजी से बाहर निकल गई ।
जुनून
लाला जी की दुकान पर रोज की तरह ही चहल कदमी थी ।गर्मा- गरम पोहा, जलेबी, समोसे ,और लाल पेड़े की सुगंध चारों ओर फैली हुई थी।
सभी प्रकार के लोग नाश्ता करने आते और लाला जी सभी को ध्यान से सुनते भी थे।
” देखो सरकार ने पेट्रोल के दाम
फिर बढ़ा दिए”- ऑटो वाले ने चिंता जाहिर की ..
“अब क्या करें महंगाई तो सर उठा कर नाच रही है-” किराने की पर्ची पकड़े मध्यमवर्गीय बाबू बोल उठा।
“अपना पैसा कहां रखें अब तो बैंकों की ब्याज दर भी घटती जा रही है”- बुजुर्ग पेंशनर ने भी चिंता जाहिर की ।
” सरकार न वैकेंसी निकालती है ना रोजगार देती है” एक बेरोजगार भी लगभग रो पड़ा ।
“भ्रष्टाचारी देश है मेरा वीजा फाइनल हो जाए तो दूसरे देश चला जाऊं” एक सुसज्जित नवयुवक ने अपनी इक्छा जाहिर की ।
” ना कोई सुख ना सुविधा गरीबों का तो अब भगवान भी नहीं रहा” एक गरीब कामगार भी बोला ।
जितने मुंह उतनी शिकायतें सभी को देश मैं व्यवस्था और सरकार से शिकायत थी ।अवसरवादी राजनीति और भ्रष्टाचार पर आए दिन नित नई घटनाओं का चर्चा केंद्र लाला जी की दुकान ही थी। लालाजी पिछले छ: दशकों से दुकान के इर्द-गिर्द अपना जीवन चला रहे थे ।
तभी लालाजी अपने गल्ले से उठे ऑटो में एक बुजुर्ग महिला अपने पोते के साथ उन तक आई। उनका सर श्रद्धा से नतमस्तक हो गया।
” प्रणाम भाभीजी”
पेड़े और जलेबी बांध दो भैया
ओह!!
यह क्या वर्दी पहने 8 साल के मासूम पर उनकी नजर पड़ी ।
स्कूल में फैंसी ड्रेस था, भैया अपने बाबा और पापा की तरह वही सेना में जाने का जुनून आज मेजर का रोल किया।
पहला पुरस्कार भी मिला सोचा घर मिठाई लेती चलूं ।
रामगोपाल लाला जी का बचपन का सहपाठी था उसका बेटा मनोहर भी वैसा ही था
जुनूनी… लालाजी ने दोनों के देश सेवा के जुनून को अपनी आंखों से देखा और उनकी शहादत को भी।
अब यह छोटा एकमात्र सहारा कृष्णा भी उसी जुनून को जी रहा है ।
शत शत नमन है ऐसे परिवार को इन्हें देश से शिकायत तो होगी पर देश के लिये अपना सर्वस्व न्योछावर करने का जुनून भी साथ में जिंदा है।
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