






लघुकथा – •महेश राजा
●मज़दूर दिवस
-महेश राजा
[ महासमुंद-छत्तीसगढ़ ]
वे बडे प्रसन्न चित अपने बंगले पहुंचे।
आज मजदूर दिवस पर एक मजदूर यूनियन ने उन्हें मुख्य अतिधि की भूमिका मे आमंत्रित किया था।उन्होंने अपना भाषण एक विद्वान मित्र से लिखवाया था।जिसमे मजदूरों के उत्थान, उनके पी एफ एवम स्वास्थ्य संबंधी बातों का जिक्र था।सबसे ज्यादा तालियां उन्हें बाल मजदूरी के विरोध में कही गयी बातों पर मिली।उन्होंने यह भी कहा था कि बच्चों का अधिकार पढाई आदि का है,उनसे मजदूरी करवाना सामाजिक अपराध है।उनका स्वागत बहुत ही अच्छे ढंग से हुआ था।
स्टडी रूम मे बैठकर उन्होंने सर्वेंट को पानी लाने का आदेश दिया।शहर के धनाढ्य लोगो मे उनकी गिनती है।वे समाजसेवी एवम क ई संस्था के संरक्षक भी है।उनकी अनेक फैक्ट्री ज है,जिसमे अधिक तर बालमजदूर ही कार्य करते है।राजनीति में उनकी पकड है,समाज मे रसूख भी।तो कोई उनकी शिकायत नहीं कर पाता।
एक लगभग पंद्रह वर्षीय किशोर एक ट्रे मे ठंडे पानी का गिलास लेकर आया।यह भी उनकी फेक्ट्री मे काम करता था।फुर्तीला था,सो उसे घरकाम के लिए ले आये थे।
उन्होंने धीरे से आंखे खोली,पानी का गिलास लिया।फिर बालक से कहा,अरे राजू बहुत थक गया हूं, पांव दबा दे।
राजू जमीन पर बैठ कर पैर दबाने लगा,उन्होंने फिर से आंखे बंद कर ली और आज के कार्यक्रम मे हुई अपनी वाहवाही का आनंद लेने लगे।
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