व्यंग्य- •आलोक शर्मा
●काल का दम निकाल
-आलोक शर्मा
[ भिलाई-छत्तीसगढ़ ]
वैसे तो काल तीन प्रकार के मान्य हैं मगर अब कई प्रकार के हो गए हैं। जो कई प्रकार के होते हैं उन्हें वायरस कहा जाता है ।अभी कोरोना काल चल रहा है। इसमें किसी का फोनकॉल आते ही जी घबराता है कि ऐसी-वैसी खबर न हो। प्रथमत: तो कोरोना ‘काल’ चीन नामक दुष्ट देश की देन है और बाकि सब देश एक दूसरे से लेन है। इस काल में कहीं आॅक्सीजन का अकाल है तो कहीं वैक्सीन का।जहां जो भी अकाल है वहां कालाबाजारी मालामाल है। पकड़ाते तक जो पकड़ में भी आ रहे हैं और जो नहीं पकड़ आ रहे वो देश की आंतरिक व्यवस्था हैं। पकड़ की देरी ही शुरुवात के लक्षण होते हैं इसलिए कोरोना प्रथम भी शुरू में पकड़ नहीं आ रहा था।कोरोना नंबर दो में शुरुआत के लक्षण पकड़ में आ रहे हैं तो सांस छूट जा रही है। पहले कड़ाई थी तो दवाई नहीं थी।अब दवाई मिली तो ऑक्सीजन का रोना है। हमने तो पिछली चेतावनी को पीछे छोड़ दिया अगली सीधे उठावनी लेके आ गई।
कोरोना को लॉकडाऊन बड़ा प्रिय है। जबकि वो जानता नहीं कि प्यार के संक्रमण में जो प्रिय होता है अकसर उसी के लिए मरना पड़ता है। दो गज की दूरी हटी तो दो गज के नीच पटे। अस्पताल और इलाज जगह मिलने पर निर्भर है इसलिए घर पर ही ठीक हो जाइये नहीं तो काल में सोचना पड़ेगा कि स्वर्ग-नरक में जगह मिले न मिले पर शमशान में तो जगह मिले। नेताओं को छोड़कर बाकी सबके लिए मुखसुरक्षा अनिवार्य है। इसके लिए मॉस्क जरुर पहनिए।वोट डालने तक कोरोना नहीं होने की छूट है।
कोरोना के इस अभिशप्त काल ने जहां कामकाजी, दिहाड़ी मजदूर,उद्योग धंधों को डसा तो सभी आयोजनों को भी ले डूबा।
निज स्वार्थ से सेनेटाइज प्रयोजन भी न हो सके।मंचातुर महोत्सव मन मसोसते रह गये।इस बार तो कोई ऑनलाइन भी नहीं दिख रहा। एक दूसरे की हवा गोल कर की देने चुनौती वाले अब हवा से पाज़िटिव हो जाने की दहशत में हैं।
पशु-पक्षी और जानवर अपनी जीवन परंपरा नहीं तोड़ते इसलिए उनकी प्रकृति पर कोरोना बेअसर है। यहां आदमी सेल्फी लेते लेते इतना सेल्फिस हो गया कि किसी से संपर्क होते ही कोरोना सजा देने लगा। नजदीक होने की मगजमारी महामारी हो गई। खैर जो होना है वो होकर ही रहता है।
कोरोना काल की बड़ी परेशानी उन घुमंतूओ को होती है जो यह सिद्ध करते हैं कि पृथ्वी चौबीस घंटे में एक चक्कर लगाती है जबकि वे दिन चार बार बेमतलब घूम सकते हैैं। बिना मास्क के घुमते हुए लोगों को कान पकड़ कर उठक-बैठक करने या पुलिस का डंडा पड़ने से वाइरस भाग जाता है। और कोई तो उनसे उलझते हुए युट्युब के वाइरल वीडियो बन जाते हैं।दारुबाजों की अपनी परेशानी है जो कि वे जुगाड़ से हल कर लेते हैं। पढ़ने लिखने और पढ़ाने से लेकर जनरल प्रमोशन के बाद भी स्कूल फीस पटाने की परेशानी है। एक अलग तरह की परेशानी हमारे एक श्रृंगार रस के कवि मित्र को भी हो रही है कि मॉस्क, आक्सीमीटर, सेनेटाइजर इत्यादि की उपमाओं को देने के लिए उपयुक्त भाव मुखड़े में प्रकट नहीं हो रहा है।
बहरहाल जब सारी परेशानी के बीच जीवन मरण के प्रश्न आत्मसुरक्षा को लेकर है तो कोरोना काल का भी यही कहना है कि भूत काल का पूर्वाग्रह वर्तमान का दम निकाल देता है और भविष्य की आशंका भूत बनकर पीछे पड़ जाती है तब खुद जियो और दूसरों को भी जीने दो।