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तुम्हारा स्नेह – सरस्वती धानेश्वर

5 years ago
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तुम्हारा यूं खामोश होकर देखना मुझे,

आश्वस्त कर देता है मेरी रूह को ।

स्नेह से भरा आमंत्रण,

एकांत में स्मृतियां पुकार रहीं हों जैसे ।

जन्म मरण से मुक्ति सदियों से मिलने को आतुर ।

वही मोड़ वही रास्ते, वही ख्यालों की पगडंडियां,

सधी हुई खामोश पदचाप ।

चुपके से पुकारती है मुझे ।

मेरी चेतना को आलोकित करता हुआ

तुम्हारा मृदु स्पंदन आल्हादित करता है मुझे |

झंकृत करता तुम्हारा मधुर स्वर , वीणा की सुरीली तान छेड़ता है

जैसे गूंजता कोई राग ।

मेरे मन मस्तिष्क को झकझोरता तुम्हारा मद्धिम स्वर,

और बज उठती है एक तरंग ।

मंत्र- मुग्ध करती रहस्यमय आभा, खींचती है तुम्हारी ओर ।

जड़वत कर देती है , देह बहने लगता है

अविरल प्रवाह एक सम्पूर्ण समर्पित सहज – भाव ।

मेरे आगोश में

सिर्फ प्रेम , हां प्रेम ।

कवयित्री संपर्क- 94241 36135

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