एक अदभुत वन का भ्रमण कान्हा अभ्यारण्य, बाघ । क्या बाघ इधर से अभी निकला है ?
जी हां ! साहब बाघ अभी निकला है । वह देखिए उसके पैरों के निशान । इतना सुनते ही हम सभी लोग जिप्सी में बैठे – बैठे ही गाईड द्वारा इशारे से दिखाए गए निशान को देखने का प्रयास करने लगे । निशान ठीक से तो नहीं दिखा , परंतु बाघ का नाम सुनते ही हम रोमांचित हो उठे, यहां तक कि हमारी 2 वर्षीय कन्या भी । हमारी गाड़ी रुक गई इसी अंदेशा में की शायद बाघ महराज साल के घने जंगलों से आकर हमें दर्शन देंगे । हमारी गाड़ी के साथ – साथ और गाड़ियां भी आ गई , परन्तु अभी तक बाघ महाशय नहीं आए । किसी ने बताया कि बाघ वह दूर जो पेड़ दिख रहा है , उसके पीछे बैठा हुआ है । किसी ने बताया कि बाघ यहां से दूर निकल गया है । तभी एक साथ कई आवाजें हुई , गाइड ने बताया कि यह आवाजे बार्किंग डियर तथा लंगूर की है और तय है कि बाघ आसपास ही कहीं है । कौतूहलवश हम वहीं रुक गए । परन्तु यह क्या दस मिनट बीत गए बीस मिनट बीत गए , काफी समय बीत गए परन्तु बाघ बहादुर नहीं दिखे । दिखते भी क्यों , यह जंगल है साहब , चिड़िया घर नहीं । यहां उनकी मर्जी चलती है अपनी नहीं । यह सोचकर हमने गाइड को इशारा किया आगे बढ़ने के लिए और इशारे के साथ ही हमारी गाड़ी चल पड़ी कान्हा अभ्यारण के एक अपरिचित कच्चे पथ पर । कान्हा अभ्यारण वास्तव में एक अदभुत वन है । यहां पल – पल में दृश्य बदल जाता है । कभी आप स्वयं को साल के घने जंगलों के बीच पाएंगे तो कभी बांस के झुर्मुटों के बीच । कभी आप स्वयं को घास के मैदानों के बीच पाएंगे तो कभी पहाड़ के ऊपर पत्थरों के बीच । कान्हा में अदभुत जैव विविधता है । अनेक प्रकार के वनस्पतियों के अलावा भांति – भांति के पशु पक्षी पाए जाते हैं जो ज्यादातर पर्यटक बाघ देखने की चाह में नजरअंदाज कर देते है । इसलिए हमने कान्हा जाने से पहले यह निश्चय कर लिया था कि बाघ दिखे ना दिखे हम कान्हा की विविधता, सुंदरता, भव्यता तथा उसकी अपरिचित रहस्यमयता को जरूर महसूस करेंगे । ” वह देखिए । जंगली सूअर जो की बाघ के पसंदीदा शिकारों में से एक है । वह देखिए गौर यानि इंडियन बाईसन । जरा सावधान एवं सभी लोग शांत हो जाए ।” गौर का एक झुंड सड़क के किनारे खड़ा था , हम थोड़ा भयभीत हो गए थे कि वह आक्रमण ने कर दें । परन्तु उन्होंने हमारी तरफ देखा भी नहीं और हमारी गाड़ी आगे बढ़ गई । कुछ देर बाद हम एक घास के मैदान में थे और धूप की किरणे उन सुनहरी घासों की रंगत को और बढ़ा रहा था । तभी हमको बारहसिंघा दिखा, जो सम्पूर्ण भारत में मात्र कान्हा अभ्यारण में ही प्राकृतिक तौर पर पाया जाता है । हम उस शर्मीले सीधे – साधे हिरण की प्रजाति को देख रहे थे कि उन्ही की प्रजाति का एक अन्य प्राणी यानि चीतल का एक झुंड बिल्कुल हमारे पास आगया और कौतूहलवश हमको देखने लगा । आंखों ही आंखों में जैसा कह रहा हो की क्यों तुम लोग हमारे घर में घुसते जा रहे हो और हमारी शांति को भंग कर रहे हो ? हमको निरुत्तर पाकर यह झुंड आगे बढ़ गया और हमारी गाड़ी भी आगे बढ़ गई । ” साहब ! यह देखो । यह है श्रवण ताल । यही पर श्रवण कुमार को पानी लेते वक्त जानवर समझकर राजा दशरथ ने तीर मारा था और उनकी मृत्यु हो गई थी । श्रवण ताल देखते – देखते हम सभी को रामायण का वह प्रसंग सहज ही स्मरण हो उठा और साथ ही साथ यह प्रसंग कान्हा वन की ऐतिहासिकता को और प्रमाणित करने लगा । लेकिन जब गाइड ने बताया कि इसी ताल के आसपास बाघ, भालू और तेंदुआ देखने की अधिक संभावना रहती है । तो हम चौकन्ना हो गए लेकिन इन जानवरों को शायद हमारी मौजूदगी अच्छी नही लग रही थी और इसलिए अथक प्रयास के बावजूद भी इन्होंने दर्शन नहीं दिया । ” हमारे कान्हा का यह सफर बहुत ही संतोषजनक रहा । हमने कान्हा के उस अदभुत दृश्य को देखा जब सूर्य प्रातः काल एवं सांयकाल अपने किरणों से उस सम्पूर्ण वन को आच्छादित करता है , निश्चय ही वह दृश्य हमारे मानस पटल पर हमेशा के लिए अमर हो गया है , ऐसी उसकी सुंदरता है । हमने कान्हा में बाघ नहीं देखा तो क्या हुआ , लेकिन बरहसिंघा , चीतल , सांभर , बार्किंग डियर , काला हिरण , गौर , लंगूर , हांथी तथा जंगली सूअर तो देखा । हमने अनेक प्रकार के पक्षियों को देखा जिनके बारे में ना ही कभी सुना था और ना ही पढ़ा था । हमने कान्हा में जाकर यह भी जाना था कि हमारी दो वर्षीय कन्या भी वन्यजीव में कितना दिलचस्पी रखती है , शायद हमसे भी ज्यादा । हमने कान्हा में जाकर यह महसूस किया कि वन्य क्षेत्र में हमारी अत्यधिक अतिक्रमण और घुसपैठिया स्वभाव उसकी संपदा एवं सात्विकता को कहीं ना कहीं प्रभावित कर रहा है । हम कान्हा के गेट से भले ही बाहर आ गए है परन्तु हमारा मन शायद अभी भी कान्हा के अंदर ही है । शायद किसी बांस के झुरमुट के नीचे किसी लंबे साल के पेड़ की चोटी पर ।
लेखक
अंशुमन राय
प्रबंधक, भारतीय खाद्य निगम, इलाहाबाद
संपर्क- 09076500207